हसीं वादियों में इठलाते एक देश
जहां स्याही सफेद हो जाया करती थी
में जा जा देसी कव्वे इतराते
देस में आकर इनका दर्प तीक्ष्ण हो जाया करता.
श्रद्धा,विश्वास,नैतिकता, ईमानदारी,सत्य,
अहिंसा,करुणा,वात्सल्य ..
ऐसे ढेर सारे फेशियल बाज़ार में मौजूद थे
जिनका इस्तेमाल गाहे बगाहे लोग खूब किया करते.
ऐसे ढेर सारे फेशियल बाज़ार में मौजूद थे
जिनका इस्तेमाल गाहे बगाहे लोग खूब किया करते.
पुरखों की आत्माएं व्यथित थीं
उनकी भी जिन्होंने धर्मशालाएं बनवाईं,
लंगर आम हुआ
उनकी भी जिन्होंने सर्वस्व त्याग हिमालय में धुनी रमाई..
आत्माएं ऐसी माँ थी जिसके दिल से पहला शब्द उच्चारित हुआ था:
बेटे चोट तो नहीं लगी
जबकि बेटा माँ का कलेजा निकाल भागा कि
ठोकर लगने पर गिर पड़ा था.
व्यथित इसलिए नहीं कि
इमारतों से
उनकी नाम पट्टी हटा दी गयी
दरअसल उन्होंने कभी नाम पट्टी लगवाई ही नहीं
आत्माएं
दुखी इसलिए थीं कि
समय फेशियल का हो चुका था
और अब जगह जगह
दरअसल उन्होंने कभी नाम पट्टी लगवाई ही नहीं
आत्माएं
दुखी इसलिए थीं कि
समय फेशियल का हो चुका था
और अब जगह जगह
गोयबल्स के साकार रूपों की जय जय कार हो रही थी...
गोयबल्स को नहीं जानते तो
यह अवश्य सुना होगा
दिल्ली में बन्दर का धमाल
गणपति बप्पा का दुग्ध सेवन
हाजी पीर में समुद्री पानी मीठा हुआ.
चित्र साभार आएश की कंप्यूटर कारीगीरी