रविवार, 27 जुलाई 2008

इस्लाम की व्याख्या !



आतंक के ग्रास बने तमाम मासूमों के नाम

वक़्त फ़ज्र का
मुअज़्ज़िन की सदा
अस्सलातो-खैरुन-मिनन-नोम

और तुम्हारा इस्लामिक बम
आ गिरता है

नमाज़ी-समेत
मस्जिद
हो जाती है
शहीद।

ऐ ! पाक हुक्मराँ
व्याख्या करो
अपने
इस्लाम की।

(प्रात:काल की नमाज़,अज़ान पुकारनेवाला, नमाज़ नींद से बेहतर है, पवित्र और पाकिस्तान )

बुधवार, 23 जुलाई 2008

आदमी,आदमी सा






























सूरज, सूरज सा
चाँद, चाँद

कुत्ता, कुत्ता सा
गिरगिट, गिरगिट


फूल, फूल सा
शूल, शूल


मित्र ! कब दिखेगा
आदमी, आदमी सा

बुधवार, 2 जुलाई 2008

खड्गसिंह

बस्स धुन में चढ़ते जाना
पहाड़ों और पेड़ों पर
इससे बिल्कुल अंजान कि
वहाँ काँटे और ज़हरीले जीव भी हैं
बचपन की आदतें कहीं छूटती भी हैं ।


हम सब कुछ भला-भला सा समझने के
आदीजो ठैरे
जानती तो थी कि वह कई अस्तबलों में जाता है
अब उबकाई आती है कहते कि
वह बिल्कुल पिता की तरह था
हर संकट में साथ देने को तत्पर
उसकी डांट भी कभी बुरी नहीं लगी






सुलतान पर उसकी दृष्टि तो थी
पर मैंने हमेशा इसे वात्सल्य समझा


उस शाम
ज़रूरी निर्देश समझाते-समझाते
उसके हाथ पीठ पर रेंगे
तो उसकी कुटिल मुस्कान की हिंसा
मेरी आंखों से काफ़ी दूर थी कि
अचानक
उसकी पकड़ मज़बूत हो गई



सुलतान को मुझसे ज़बरदस्ती झपटने के
प्रतिकार में मैं बुक्का मार दहाड़ी




वह आज का खड्गसिंह है माँ
देर तक मुझे समझाता रहा और
नए-नए प्रलोभनों की साजिशें बुनता रहा




माँ , मुझे लोग सहनशील कहते हैं
उन्हें पता है इसमें छुपी यातनाओं का



मदद को बढ़ा अब हर हाथ सर्प-सा लहराता है
अपनत्व से निहारती निगाहें चिंगारियां उगलती हैं




हे प्रभु! मुझे क्षमा करना
मैं ने सभी संपर्क ख़त्म कर लिए हैं
पर माँ , हर कोई खड्गसिंह तो नहीं होता !

मुझे गर्भ में छुपा लो माँ
बहुत-बहुत डर लगता है




(रेखांकन चार साला साहबजादे आयेश लबीब का
जो अक्सर वह कंप्यूटर पर बैठ कर किया करते हैं )
Related Posts with Thumbnails

हमारे और ठिकाने

अंग्रेज़ी-हिन्दी

सहयोग-सूत्र

लोक का स्वर

यानी ऐसा मंच जहाँ हर उसकी आवाज़ शामिल होगी जिन्हें हम अक्सर हाशिया कहते हैं ..इस नए अग्रिग्रेटर से आज ही अपने ब्लॉग को जोड़ें.