सवाल दर सवाल है , हमें जवाब चाहिए
और ये सवाल उनका है, जो दमित हैं, दलित हैं, शोषित हैं ।
बड़े अनमने ढंग से लिख रहा हूँ। उत्सव की गहमा-गहमी और मैं कहाँ दुखियारों और पीडितों , गरीबों की बात लेकर बैठ गया।
मुझे सिवा अश्वनी की एतिहासिक जीत के कुछ और नज़र नहीं आता कि मैं खुश हो सकूं।
भले कुछ लोग बाईसवीं सदी में हों लेकिन अपन तो अभी तक अठारहवीं में जी रहे हैं और कई तो सोलहवीं या तेरहवीं में ही हों।
लेकिन भाई खबरें तो इक्कीसवीं या बाईसवीं की ही पढाई-देखाई जाती है।
हाँ हम जैसे कलम के सुरमा भोपाली सर ज़रूर फोड़ सकते हैं।
अभी हाल में ही एक आयोजन में शिरकत करते हुए ख्यात देसी - चिन्तक-पत्रकार प्रभाष जोशी ने कहा :
अब तो मध्य-वर्ग के साथ समाचार माध्यमों ने भी देश में बढती असमानता की और देखना बंद कर दिया है।
जबकि स्थिति यह है कि देश में २००४ में ९ खरबपति थे जो २००८ में बढ़कर ५६ हो गए। यानी फ़क़त चार बरस में ही खरबपतियों की संख्या छः गुना बढ़ गई.(खरबपतियों आज़ादी तुम्हें मुबारक ! ) और दूसरी ओर अर्जुन सेन गुप्ता कि रपट के मुताबिक ८४ करोड़ यानी ७७ फीसदी लोग रोजाना बीस रूपये भी नहीं पाते। उनमें से ३२ करोड़ लोग तो सिर्फ़ एक समय का भोजन जुटा पाते हैं। २२ करोड़ ऐसे हैं जिन्हें पता नहीं कि उनका अगला भोजन कब कहाँ से आएगा या आयेगा भी या नहीं।
हर वर्ष यह पन्द्रह अगस्त आता है, और चला जाता है .रमुआ आज भी रिक्शा चलाता है.उसका बाप भी यही करता था.किसन अब तक मुंबई से नहीं लौओटा है.समीर दत्त अपनी माँ से मिलने जम्मू नहीं जा पा रहा है. जुबैदा अब भी मेम साहब के यहाँ बरतां मांजा करती है.इलाहाबाद की सड़क पर आज भी औरत पत्थर तोड़ती है.गरीबी हटाओ के नाम पर देश पर खरबों का क़र्ज़ हो गया है.पर यह पैसा गरीबों तक नहीं पहुँचा.आँख फाड़कर देखिये तो यह पैसा आपको सड़कों पर भागती चम्-चमाती गाड़ियों,ब्यूटी पार्लरों से ले पाँच सितारा होटलों की लम्बी कतारों, ऊँची-ऊँची मीनारों, खद्दर धारीओं के कुरते झांकती तोंदों और फार्म हौसों में दिख जाएगा।
तेजपाल सिंह तेज ने सही कहा है :
भुखमरी के वोट ने बदले हैं तख्तो-टाज
पर भुखमरी के मील के पत्थर नहीं बदले
बहुत ही सुनियोजित ढंग से अब खेती-किसानी पर भी कब्जे किए जा रहे हैं.खेती को उद्योग का दर्जा देने की बात के साथ-साथ विदेशियों को भी नेवते दिए जा रहे हैं.अब खेती किसानों के लिए नहीं.किसी किसान को कुछ जुगाड़ में मिल जाए गनीमत जानिए.आंध्र से लेकार बस्तर और महारष्ट्र के इलाकों में किसान आत्महत्या कर रहे हैं.अभी नोइडा में किसान पुलिस की गोलिओं का ग्रास बने।
बात महज़ गाँव की नहीं.शहर में पढ़े-लिखे युवाओं की तादाद बढ़ रही है। जो बेरोजगार है.चमक-दमक से प्रभावित होकर इनमें से कई अनैतिक और भ्रष्ट कामों की ओर प्रेरित कर दिए जाते हैं.अपराध के आंकडें बढ़ रहे हैं.श्याम ८ बरस का है.होटल में बर्तन माजता है.करोड़ों बच्चे पढने और खेलने कूदने की उम्र में कबाड़ में अपना भविष्य तलाश कर रहे हैं.महानगर की ओर भागती लम्बी फोज है.दिल्ली, मुंबई और कोल्कता जाने वाली रेल गाँव और कस्बों के जवानों से पटी रहती है.सुंदर कल की खोज में निकले ये लोग घर लोटना चेन तो भी नहीं जा पाते.एकाक भाग्यशाली हो सकते हैं।
आप ही बताएं क्या इन्हें मुबारकबाद कहूं!
अदम गोंडवी याद आ रहे हैं:
सो में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है
दिल पर रख कर हाथ कहिये देश क्या आजाद है
कोठियों से मुल्क की मियार को मत आंकिये
असली हिन्दुस्तान तो फुटपाथ प आबाद है
छैला संदु पर बनी फिल्म को लेकर लेखक-फिल्मकार में तकरार
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मंगल सिंह मुंडा बोले, बिना उनसे पूछे उनके उपन्यास पर बना दी
गई फिल्म, भेजेंगे लिगल नोटिस जबकि निर्माता और निर्देशक का
लिखित अनुम...
8 वर्ष पहले
18 comments:
वँदे मातरम !
बाते तो आप की दरुस्त हे,हम भी...
लेकिन पहले...
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाऐं ओर बहुत बधाई आप सब को
अब जो भी है, बधाई तो ले ही लिजिये.
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
आजाद है भारत,
आजादी के पर्व की शुभकामनाएँ।
पर आजाद नहीं
जन भारत के,
फिर से छेड़ें संग्राम
जन की आजादी लाएँ।
आपको भी स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं!
वँदे मातरम!
मैं नहीं कहता, कह सकता भी नहीं कि सवाल ग़लत हैं,
मेरा सवाल सिर्फ़ इतना है कि हमने ख़ुद क्या किया?
स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।
itna hi keh sakta hun ki hum ghulaam nahi hai.Shahroz bhai aapko badhai ek aazad kalam ki aur dusri kalam ko aazazdi dene waali aazadi ki
नहीं कहता, कह सकता भी नहीं कि सवाल ग़लत हैं,
मेरा सवाल सिर्फ़ इतना है कि हमने ख़ुद क्या किया?"
बिल्कुल सहमत हूँ मैं अनुराग जी कि बात से.. आखिर हमें भी अपना नसीब बदलने के लिए ख़ुद कुछ करना होगा.. हर बात के लिए क्यों किसी के आश्रित हो जाते हैं हम??
कुछ भी हो, कुछ तो तरक्की हुई ही है न?? उसको सोच कर ही स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं लीजिये..
हर जिम्मेदार ओर जज्बाती इन्सान के मन में ये सवाल है शहरोज जी.....पर इन सवालों का जवाब भी हमें ही ढूंढ़ना है इसी समाज में ..इसलिए अगली पीड़ी से उम्मीद रखना लाजिमी है......रखनी पड़ेगी....
आजादी की शुभकामनायें कबूल कीजिये!
मगर मैं आपकी बात से इत्तिफाक रखता हूँ, की आजादी का अर्थ क्या होता है ? लगता है की इस लेख को विद्वान साथी लोग, ध्यान से नही पढ़ पाए ! यह सवाल उठाया ही गया है, दलित गरीब और शोषित लोगो की ओर से ! आजादी का अर्थ होता है खुशियाँ, स्वयं को अपने घर में, अपने अस्तित्व, का अहसास होना ! और अगर किसी को अपने ही घर में, किसी भी कारण, पराया होने का अहसास होने लगे तो हमें उन कारणों को खोजने की जरूरत पड़ेगी ! और यही हमारा दायित्व भी होना चाहिए ! सवाल बहुत बड़ा है और जरूरत हैं चिंतन की, और इस गंभीर मसले पर हम सबको खुले मन के साथ आगे आना चाहिए !
aazad to hai hi hum
aazad nahi hote to shayad ye sawal nahi aata zehan main
kisi ne bhaut sach kaha hai
ki sabse badhi aazadi hai
ashmati dikhane ki batane ki
agar aap kisi baat ko mana kar paate hain samjh lijiye aap aazad hai
आज़ादी की बात पर होता नहीं गुमान। बहुत गुलामी देश में पसरी है श्रीमान्॥
पसरी है श्रीमान् यहाँ बदहाल गरीबी।
जाति-धर्म के भेद और आतंक करीबी॥
घोर अशिक्षा, पिछड़ापन, बढ़ती आबादी।
भ्रष्टतंत्र की भेंट चढ़ी अपनी आज़ादी॥
आज़ादी का मंत्र जप रहे ब्लॉगर भाई।
मेरी भी रख लें श्रीमन् उपहार बधाई॥
शुभकामनायें... केवल शुभकामनायें ही, इससे आगे...
और हम कूश्श नेंईं बोलेगा ।
जैसे अब तक काम चलाते आये हैं,
वैसे ही सिरिफ़ शुभकामनाओं से अपना काम चलाइये नऽ !
ऒईच्च..हम बोलेगा तो बोलोगे की बोलता है,
ईशलीए हम कूश्श नेंईं बोलेगा ...
शहरोज भाई ,आपकी पोस्ट पढ़ी ,आजादी के मायने क्या है ,पहले इस पर विचार किया जाना चाहिए ,एक आजाद देश मे का गरीबी,बेरोजगारी,निर्धनता नहीं हो सकती?मुझे लगता है होती है ,आम जनता को उसकी बुनियादी समस्याओं से निजात पाने की संभावना का भी नाम आजादी है,जहाँ ये संभावनाएं ख़त्म होती है वहां परतंत्रता का सत्र प्रारंभ हो जाता है ल,कहने का मत्ल्लब ये की हमेस इस बात पर चर्चा न करेक की हम आजाद हैं या नहीं ,इस बात पर चर्चा करनी चाहिए थी की,हम परतंत्र की और तो नहीं बढ़ रहे ,पहले अंग्रेज थे अब पूंजीवादी ताकते हैं ,नंग धड़ंग राजनेता हैं ,और उस सबसे बढ़कर हमारी गुलाम मानसिकता ,जिनसे विषमता का ये वातावरण पैदा हो रहा है ,निरिहिता बढ़ रही है
सर आपकी पोस्ट पढ़ी, और साथ मॆं आजाद भारतियों की टिप्पणियां भी, मैंने अभी अभी सपने देखना शुरू किया हैं सोचता हूँ, स्थिति जैसी भी हो बदली जा सकती हैं, बोझ कितना भी भारी हो एक दिन के लिए तो उठाया ही सा सकता हैं, ऐसा मैं सोचता हूँ "मैं" जो की अभी १९ साल का हैं, मेरी आवाज़ को सुर देते हैं आप जैसे लोग जो मुक्त होकर लिखते हैं, लेकिन क्या आप उन ठइप्पनी कारों से पूछें गे की जब कुछ से सहमत होते हुए भी वो किस बात से असहमत थे जो ऊन्होने ने बधाइयाँ दी या वो कौन सी शक्ति हैं जो उन्हें बधाई देने को मजबूर करती हैं, मेरे समझ मैं यह वही मज़बूरी हैं जिसे प्रभास जोशी जी ने बताया हैं, ये वही मज़बूरी हैं जिसके चलते "अब तो मध्य-वर्ग के साथ समाचार माध्यमों ने भी देश में बढती असमानता की और देखना बंद कर दिया है।" हम हर बार विद्रोह के लिए अगली पीढी, अगली गली, अगला घर, और अगली सुबह का इंतजार करने के बहाने ढूढ़ लेते हैं
और विद्रोह अगली रात के के लिए एक अच्छा मजाक हो कर रह जाता हैं
...............गुस्ताखी माफ़ हो
swatantra bharat ke hamne jo sapne dekhe the vo poore nahi ho sake.par sapne dekhne par to hamara hak hai.tabhi aaj nahi to kal ve poore jaroor honge.aamin.vaise badhai.jhakjhorne vaali rachnaon ke liye.
bahut khub likhtey hai aap..
humesha isey zaari rakhiye....
hum bhi isi shayari ki duniyan sey hain,
mana nayen hai, par idhar bhi dhyan dete rahiye
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