खुशियाँ और रंगीनियाँ किसे भली नहीं लगतीं.और ज़िंदगी में शादी!! ऐसा लड्डू जो खाए तो पछताए और न खाए तो भी आंसू बहाए.लेकिन जिन्हें ज़िंदगी से कूट-कूट कर प्यार है,उनकी भी तमन्ना लबरेज़ है और ढेरों लबाबब अपेक्षाएं हैं अपने संसार की! अपने घर-आँगन की, अपने राज-दुलारों की.जिनके संग वो हंसें, किलकारियों से उनकी छत गूंजे!लेकिन नियती उनसे उनका सपना , उनकी खुशियाँ छीनने को आमादा है.
अधिकाँश युवा विकलांग : नहीं राज़ी कोई शादी करने को
बौद्ध की धरती मध्यबिहार हमेशा अभाव और विसंगतियों के लिए जाना जाता है। विकास के असमान वितरण के कारण ही असंतोष जन्म लेता है। जिसका लाभ नक्सली उठाते हैं। गया से महज़ चौसठ किलोमीटर के फ़ासले पर है आमस प्रखंड का गांव भूपनगर जहां के युवक इस बार भी अपनी शादी का सपना संजोए ही रह गए कोई उनसे विवाह को राज़ी न हुआ। वह दिल मसोस कर रह गए। वजह है उनकी विक्लांगता। इनके हाथ-पैर आड़े-तिरछे हैं, दांत झड़ चुके हैं। बक़ौल अकबर इलाहाबादी जवानी में बूढ़ापा देखा! जी हां! यहां के लोग फलोरोसिस जैसी घातक बीमारी का दंश झेलने को विवश हैं। इलाज की ख़बर यह है कि हल्की सर्दी-खांसी के लिह भी इन्हें पहाड़ लांघकर आमस जाना पड़ता है। भूदान में मिली ज़मीन की खेती कैसी होगी? बराए नाम जवाब है इसका। तो जंगल से लकड़ी काटना और बेचना यही इनका रोज़गार है।
अधिकाँश युवा विकलांग : नहीं राज़ी कोई शादी करने को
पहले लबे-जीटी रोड झरी , छोटकी बहेरा और देल्हा गांव में खेतिहर गरीब माझी परिवार रहा करता था । बड़े ज़मींदारों की बेगारी इनका पेशा था । बदले में जो भी बासी या सड़ा-गला अनाज मिलता, गुज़र-बसर करते। भूदान आंदोलन का जलवा जब जहां पहुंचा तो ज़मींदार बनिहार प्रसाद भूप ने सन् 1956 में इन्हें यहां ज़मीन देकर बसा दिया। और यह भूपनगर हो गया। आज यहां पचास घर है। अब साक्षरता ज़रा दीखती है, लेकिन पंद्रह साल पहले अक्षरज्ञान से भी लोग अनजान थे। फ़लोरासिस की ख़बर से जब प्रशासन की आंख खुली तो लीपापोती की कड़ी में एक प्राइमरी स्कूल क़ायम कर दिया गया।
अचानक कोई लंगड़ा कर चलने लगा तो उसके पैर की मालिश की गयी। यह 1995 की बात है। ऐसे लोंगों की तादाद बढ़ी तो ओझा के पास दौड़े। ख़बर किसी तरह ज़िला मुख्यालय पहुंची तो जांच दल के पहुंचते 1998 का साल आ लगा था जब तक ढेरों बच्चे जवान कुबड़े हो चुके थे। चिकित्सकों ने जांच के लिए यहां का पानी प्रयोगशाला भेजा। जांच के बाद जो रिपोर्ट आई उससे न सिर्फ़ गांववाले बल्कि शासन-प्रशासन के भी कान खड़े हो गए। लोग ज़हरीला पानी पी रहे हैं। गांव फलोरोसिस के चपेट में हैं। पानी में फलोराइड की मात्रा अधिक है। इंडिया इंस्टिट्युट आफ़ हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ के इंजीनियरों ने भी यहां का भुगर्भीय सर्वेक्षण किया था। जल स्रोत का अध्ययन कर रिपोर्ट दी थी। और तत्कालीन जिलाधिकारी ब्रजेश मेहरोत्रा ने गांव के मुखिया को पत्र लिखकर फ़लोरोसिस की सूचना दी थी। मानो इस घातक बीमारी से छुटकारा देना मुखिया बुलाकी मांझी के बस में हो! रीढ़ की हड्डी सिकुड़ी और कमर झुकी हुई है उनकी। अब उनकी पत्नी मतिया देवी मुखिया हैं।
शेरघाटी के एक्टिविस्ट इमरान अली कहते हैं कि राज्य विधान सभा में विपक्ष के उपनेता शकील अहमद ख़ां जब ऊर्जा मंत्री थे तो सरकारी अमले के साथ भूपनगर का दौरा किया था। उन्होंने कहा था कि आनेवाली पीढ़ी को इस भयंकर रोग से बचाने के लिए ज़रूरी है कि भूपनगर को कहीं और बसाया जाए। इस गांवबदर वाली सूचना ज़िलाधिकारी दफ्तर से तत्कालीन मुखिया को दी गयी थी कि गांव यहां से दो किलो मीटर दूर बसाया जाना है। लेकिन पुनर्वास की समुचित व्यवस्था न होने के कारण गांववालों ने ‘ मरेंगे जिएंगे यहीं रहेंगे ’ की तर्ज़ पर भूपनगर नहीं छोड़ा। इस बीमारी में समय से पहले रीढ़ की हड्डी सिकुड़ जाती है, कमर झुक जाती है और दांत झड़ने लगते हैं। हिंदुस्तान के स्थानीय संवाददाता एस के उल्लाह ने बताया कि कुछ महिने पहले सरकार ने यहां जल शुद्धिकरण के लिए संयत्र लगाया है। लेकिन सवाल यह है कि जो लोग इस रोग के शिकार हो चुके हैं, उनके भविष्य का क्या होगा? आखि़र प्रशासन की आंख खुलने में इतनी देर क्यों होती है। वहीं मुखिया मतिया देवी की बात सच मानी जाए तो गांव अब भी इस ख़तरनाक बीमारी के चपेट में है ।
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6 comments:
Haalaat chintajanak hain.
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अंग्रेज़ी का तिलिस्म तोड़ने की माया।
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?
बहुत खरतनाक स्थिति बताई आप ने वेसे अब ऎसा भारत के बहुत से स्थानो पर हो रहा है, पंजाब मै भी कई जगह पर है, कारण हम खुद है, किसान लालच मै हद से ज्यादा रसायण खाद खेतो मै डालते है, उस के बाद कीटो से बचाव के लिये दवा छिडकते है, जो पानी के संग बाद मै जमीन के अंदर जाती है, हमारी नदियां अब नालो से भी गंदी हो गई है, बस एक बार आज के हालात से अगले २०,३० बाद का सोचे क्या होगा अगर हम अभी भी ना चेते तो.
आप ने बहुत सुंदर लेख लिखा, धन्यवाद
hamare ilaqe ki aapne khoob khabar lihai.nitishjee kya kar rahe hain????
सचमुच में बहुत ही चिंताजनक है.
हम्म!! यह हालात!!
बहुत दर्द है, कैसे कम होगा नहीं पता
मगर जब जब हम खुद को असहाय सा पाते हैं बड़ी तकलीफ होती है
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