हसीं वादियों में इठलाते एक देश
जहां स्याही सफेद हो जाया करती थी
में जा जा देसी कव्वे इतराते
देस में आकर इनका दर्प तीक्ष्ण हो जाया करता.
श्रद्धा,विश्वास,नैतिकता, ईमानदारी,सत्य,
अहिंसा,करुणा,वात्सल्य ..
ऐसे ढेर सारे फेशियल बाज़ार में मौजूद थे
जिनका इस्तेमाल गाहे बगाहे लोग खूब किया करते.
ऐसे ढेर सारे फेशियल बाज़ार में मौजूद थे
जिनका इस्तेमाल गाहे बगाहे लोग खूब किया करते.
पुरखों की आत्माएं व्यथित थीं
उनकी भी जिन्होंने धर्मशालाएं बनवाईं,
लंगर आम हुआ
उनकी भी जिन्होंने सर्वस्व त्याग हिमालय में धुनी रमाई..
आत्माएं ऐसी माँ थी जिसके दिल से पहला शब्द उच्चारित हुआ था:
बेटे चोट तो नहीं लगी
जबकि बेटा माँ का कलेजा निकाल भागा कि
ठोकर लगने पर गिर पड़ा था.
व्यथित इसलिए नहीं कि
इमारतों से
उनकी नाम पट्टी हटा दी गयी
दरअसल उन्होंने कभी नाम पट्टी लगवाई ही नहीं
आत्माएं
दुखी इसलिए थीं कि
समय फेशियल का हो चुका था
और अब जगह जगह
दरअसल उन्होंने कभी नाम पट्टी लगवाई ही नहीं
आत्माएं
दुखी इसलिए थीं कि
समय फेशियल का हो चुका था
और अब जगह जगह
गोयबल्स के साकार रूपों की जय जय कार हो रही थी...
गोयबल्स को नहीं जानते तो
यह अवश्य सुना होगा
दिल्ली में बन्दर का धमाल
गणपति बप्पा का दुग्ध सेवन
हाजी पीर में समुद्री पानी मीठा हुआ.
चित्र साभार आएश की कंप्यूटर कारीगीरी
67 comments:
गनीमत है शहरोज के हाँथ में की बोर्ड है तलवार नहीं ,क्यूँ हुजुर किस हद तक निचोड़ा खुद को और फैला दिया कि जा बन जा तू कविता जैसा कुछ ,ये जो कुछ भी लिखा है फेशियल के बिना है और यकीन करें हम अपने पुते हुए चेहरों को गौर से देख रहे हैं ,अपने भीतर का गोयबल्स तिलमिला रहा है |
बहुत सुंदर जी, एक एक शव्द बहुत कुछ कहता है
shaharoz, tum dilse likhate ho. har baar ek naya anubhav-lok milataa hai.
bhai kya bat hai avesh ji se sahmat.
mujhe hindi kavita kee jayada jankari nahin lekin matlab jo samajh me aaya usse ham log sabhi bechain hain ye sach hai aur bahut talkh!
समाज की विसंगतियों को उभारती...उनपर कड़ा प्रहार करती कविता.
बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है..
बहुत तीक्षण धार वाली रचना ....
बहुत सही ...आजकल तो फेशियल का ही जमाना है ..एक तेज धार कविता.सीधा वार करती है.
युवा कवि खालिद खान की प्रतिक्रिया [तकनीकी कारणों से खुद से वह पोस्ट न कर सके ]
शहरोज़ भाई कि कविता अपने समय के जीवन-जगत के संदर्भों में फैले हुए बाज़ार से द्वंद्वात्मक प्रतिरोध करती है एक ऐसा समय जब बाज़ार हमारे मानसिक स्थिति पर लगातार अघात कर रहा है और नये नए रूप बदल रहा है तो शहरोज़ भाई कि कविता उसकी सिनाख्त कर रही है ....वाक़ई बहुत ही सुन्दर कविता है है भाई इस के लिए आप को शुभकामना ...........मैं जनता हूँ भाई इस समय जैसे संघर्ष कर रहे है और समय को पढ़ रहे है तो आगे भी ऐसी जानदार कविता आने को है
बाबा की पाती के बाद यह कविता .....हम उर्दू वाले कब ऐसी नज़्म लिखने की कोशिश करेंगे..
ख़ामोश कर देती है आपकी ये नज़्म..जैसा आवेश जी ने कहा हम सभी बरहना हो गए हैं
जिस वक़्त के साए तले जीना हो रहा है इसे मरना ही कहा जाय ..जीना तो हम सभी ने कब का तर्क कर दिया
रचना में जिंदगी के कई रंग बिरंगे फेसियलों के बारे में जानकारी मिली... बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण..... ...बधाई.
मुझे कविता की बहुत समझ नहीं है. कवितायें एक पाठक के रूप में ही पढ़ता हूँ. हाँ, पाठक के रूप यह ज़रूर कह सकता हूँ कि कविता अच्छी लगी.
@tmzeya
ZEYA SAHAB KABHI IKRAM KHAWAR, FAHMIDA RIYAZ YA ZUBAIR RAZVI KI NAZME PADHEN AAPKO SHIKAYAT KA MOQA NAHIN MILEGA.
DAUR HAZIRA KO NIHAYAT KHURDBEENI SE RAUSHAN KARTI EK BEHTAREEN NAZM KEE TAKHLEEQ KE LIYE SHAHROZ SB KO MUBARAKBAD!
लेखक और कवि की असली पहचान ही यह है कि वह जो कुछ महसूस करे उसे पूरी ईमानदारी से लोगों के सामने पेश कर दे। वह सही भी हो सकता है और ग़लत भी। सही को माना जाए और ग़लती को सुधारा जाए। समाज का काम यह है। लेकिन आजकल लेखक और कवि भी फ़ेशियल लगा रहे हैं और जनता भी अपनी धुन में मगन है। कुछ कहा जाए तो लोग नाराज़ हो जाते हैं। मैं भी अक्सर सच कहने की ख़ातिर अपने ताल्लुक़ात बिगाड़ बैठता हूं। लेकिन शायद आज के सच से किसी को ठेस न लगेगी। मैं सच कहता हूं कि आप एक अच्छे कवि और लेखक ही नहीं , एक अच्छे और सच्चे इन्सान भी हैं।
आप अपनी समझ और संवेदनाओं का व्यापक संसार रचते हैं। एक-एक शब्द बुनते हैं।
शुक्रिया।
वह भाई आपने तो सरे फशिअल्स बखूबी इस्तेमाल कर डाले. इसकी थोक विक्रेता कहां मिलेंगे?
आपने पकडी है नब्ज समय
nacheez ki post ko pasand karne k liye aap sabhi ka aabhaar!
...behatreen !!!
अच्छा इंसान ही अच्छी रचना को लिख पाता है भाई
आपको बधाई.
Shahroz ke rachna sansar ke Ek Behtreen Rachna........ bahut khoob!
aapke rachna sansaar mein hamesha ki tarah ek khoobsurat aur teekhi rachna..
bazaar ne rishton ko badal diya hai bhaavna agar kahin bachi hai to sahity mein baaki manav ek sansadhan k roop mein viksit kiya ja raha hai taaki uska bharpoor upyog munaafe k liye kiya ja sake. aapki rachna mujhe lagta hai usi bimb ko ubhaar rahi hai
शहरोज़ जी बहतरीन रचना है आपकी...अंधविश्वासों और टूटते मूल्यों पर बहुत गहरी चोट की है आपने...मेरी बधाई स्वीकार करें...
नीरज
शेहरोज़ साहब! आप बहुत अच्छा लिखते हैं मैं तो तिफ्ले मकतब हूँ मेरी नई पोस्ट ''दोषी सरकार के निर्वाचक निर्दोष नहीं'' देखें तो मेरा कुछ हौसला बढ़े.
‘‘इन बदनसीबों ने मुझमें कौन सी ख़ूबी देखी जो मुझे अपना राजा बना लिया। जिस देश की जनता राजा का चुनाव करने का अधिकार प्राप्त होने के बावजूद बिना सोचे समझे अपना राजा चुनकर जो पाप करती है, ईश्वर उस देश की जनता के सर पर उसके द्वारा किये गए इस पाप की सज़ा के तौर पर मुझ जैसा स्वार्थी, निकम्मा व मानवता को कलंकित करने वाला चरित्रहीन व्यक्ति राजा के रूप में थोप देता है। लिहाज़ा मुझ पर दोष न देकर इन पापियों को अपने किये की सज़ा भुगतने दीजिए।‘‘
http://haqnama.blogspot.com/2010/07/janta-ka-dosh-sharif-khan.html
सशक्त भाव अभिव्यक्ति.
चित्र कविता में अभिव्यक्त अंतर्द्वंद को व्यक्त में पूरक हैं.
बेहतरीन रचना.
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-[गज़ल पर आप की टिप्पणी के लिए आभार ]
वाह क्य़ा बात है !.. तीखा व्य़ंग्य़ !...बेहतरीन..!
@ शहरोज़ जी को प्रणाम, जानकर अच्छा लगा कि आप प्रभाष जी के साक्षात्कार-संस्मरण लेख को किसी अखबार में जगह देना चाहते हैं. लेकिन अखबार का नाम-पता तो बता दीजिए ज़नाब. और अपना मोबाइल नंबर भी दे दीजिये. फिर मैं आपको बताता हूँ.
जी, हमज़बान देख लिया है. आपके बारे में जानकारी पहले ही मिल गई थी. यदि मेरे माध्यम से प्रभाष जी सैंकड़ों-हज़ारों लोगों तक पहुंचेंगे तो निश्चय ही सौभाग्य मानूंगा. आप यह लेख ले सकते हैं. मेरा नाम डलवाना न भूलियेगा बस. :) आगे भी संवाद होता रहेगा.
उसने कहा की दीन की तारीख पूरी लिख,
मैंने फ़क़त 'हुसैन' लिखा और कुछ नहीं!
विलादत-ए-बा-सआदत हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) बहुत बहुत मुबारक!
श्रद्धा,विश्वास,नैतिकता, ईमानदारी,सत्य,
अहिंसा,करुणा,वात्सल्य ..
ऐसे ढेर सारे फेशियल बाज़ार में मौजूद थे
जिनका इस्तेमाल गाहे बगाहे लोग खूब किया करते!!!
masha ALLAH !!!
बस यही कहूंगा...आपकी कलम को सलाम। मेरे पास अल्फाज नहीं हैं।
समय फेशियल का हो चुका था
और अब जगह जगह
गोयबल्स के साकार रूपों की जय जय कार हो रही थी...
क्या विम्ब इस्तेमाल किये हैं दोस्त बहुत तीखे सच्चाइयों को हमसे जोडती इस कविता को प्रस्तुत करने का शुक्रिया.
विसंगतियों पर तीक्षण प्रहार किया है आपने....
सार्थक रचना....
क्या जबरदस्त रचना है। दिल को खुशी हुई की आप वो शहरोज नहीं हैं जिनसे मेरा पहला परिचय हुआ था। पर आपकी पुरानी पोस्ट नहीं ढूंढ पा रहा हूं। कहां है वो सारी...किस पर क्लिक करुं.
teer ekdam nishane par hai..:)
gud one!
बहुत सुन्दर....अच्छा लगा यहाँ आकर.
________________________
'पाखी की दुनिया' में 'लाल-लाल तुम बन जाओगे...'
ek behtareen rachna ....
har shabad me kuch khaas baat hai..
Pls Visit My Blog and Share ur Comments....
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wah sir aap jaise vidwano ko padh kr hr din kuchhnaya sikhne ko milta hai.........hum jr ka bhi utsah badhaye
बहुत कुछ कह गया हर शब्द ......................
संवेदना के स्वर पर आपका इशारा समझा.पर आप नहीं समझे..हैरानी है.....सच कहने के वाल हर कोई बीजेपी का समर्थक नहीं होता....इस विचार को निकाल फेंकिए....मैं एक सधारण इंसान हूं....विरोध करने का तरीका मैने गांधीजी से सिखा है..और जान देने की हिम्मत नेताजी औऱ शहीदे आजम से.....एक बार अगर में सच बोला तो..मुझे कोई परवाह नहीं कौन इस बारे में क्या सोचता है..दोस्तों को बांटने के जितने भी कारण हैं मैं हर उस कारण का विरोधी हूं....औऱ रहूंगा..
मेरे साथ जितने भी हैं वो न हिंदू हैं न मुस्लिम न सिख न ईसाई
@ बोलेतोबिन्दास
भाई साहब आप मेरे कमेन्ट को गंभीरता पूर्वक पढ़ें .और साफ़ कहें कि आपको कहाँ आपत्ति है.और मैंने कहीं भी आपके विरुद्ध कुछ नहीं कहा है मैंने संघ की मानसिकता के विरुद्ध लिखा है.और ऐसी मानसिकता देश के दोनों प्रमुख समुदायों में घर कर गयी है.
मैंने हत्तल इमकान कोशिश की है कि कहीं भी किसी तरह का आग्रह-पूर्वाग्रह न हो.
आप इस पोस्ट को भी पढ़ें:और जो भी आपकी राय हो यहाँ व्यक्त करें.
शमा -ए -हरम हो या दिया सोमनाथ का
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/2010/08/blog-post.html
आपके उत्तर की प्रतिक्षा में हूं शहरोज भाई ....आपकी बताई दूसरी पोस्ट की प्रतिक्रिया पर
very good sir
Samajik visangatiyon ka sundar shabd chitran
Bhavpurn prastuti ke liye aabhar
प्रशंसनीय ।
सुंदर भाव लिए रचना |मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
आशा
sach kahun.....??
meri zubaan ke paas kuchh nahin hai kahane ko.....!!!
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण..
बेहतरीन रचना...
सुन्दर रचना। आपको जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें।
जन्मदिन की अशेष मंगल कामनाएँ।
ईद के पाक मौके पर मैं आपको व आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें देता हूँ !
Bahut Sundar....
बहुत बडी बडी बातें कितनी आसानी से कह जाते हैं आप। अच्छा लगता है इन्हें पढना।
............
ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
लिंग से पत्थर उठाने का हठयोग।
काफ़ी अच्छा लिखा है
http://navkislaya.blogspot.com/
shahroz ji aapke blos par kafi dino baad aayi hun.........par aage nirntrta bani rahegi ....
aapki rachna me bahut hi gambhir prahar hai samaj par sistam par.. aabhar aapka aana hua hmare blog par...
आपसे एक रिक्वेस्ट है, कृपया अपने ब्लॉग पर फॉलोवर विजेट लगा लें, जिससे आपका ब्लॉग फॉलो करके उसे नियमित रूप से पढा जा सके।
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HAR AAYAM PAR TEEKHA PRAHAR...LEKIN KAHIN KISI KO CHOT LAGE TO SAHI.
आप सब दिग्गजों को पढने के बाद ...मेरे पास शब्द नहीं की ....मै क्या टिपण्णी करूँ
मैंने कविता दो बार पढ़ी ...बस इतना ही समझ पाई की ...समाज की कुरीतयो को बखूबी उकेरा है
कविता के शब्दों की धार सच में बहुत तेज़ है .......
visangatiyon pr karara vyang hai
aapki lekhni ki dhr bahut tej hai
bahut bahut mubarak
rachana
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ईद पर मैं आपको व आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें देता हूँ !
खूब पकडा है आज के राजनीतिक हालातों को। आत्माओं के फेशियल का समय............क्या खूब लिखा है।
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