ऐसा कहा था पैगम्बर हज़रत मोहम्मद ने ।
लेकिन हुजुर का दामन नहीं छोडेंगे का दंभ भरने वाले अपने प्यारे महबूब के इस क़ौल पर कितना अमल करते हैं।
भारत में महिलाओं की साक्षरता दर ४० प्रतिशत है,इसमें मुस्लिम महिला मात्र ११ प्रतिशत है। हाई स्कूल तक शिक्षा प्राप्त करने वाली इन महिलाहों का प्रतिशत मात्र २ है और स्नातक तक का प्रतिशत ०.८१
मुस्लिम संस्थाओं द्वारा संचालित स्कूलों में प्राथमिक स्तर पर मुस्लिम लड़कों का अनुपात ५६.५ फीसदी है, छात्राओं का अनुपात महज़ ४० प्रतिशत है। इसी तरह मिडिल स्कूलों में छात्रों का अनुपात ५२.३ है तो छात्राओं का ३० प्रतिशत है।
मुस्लिम औरतों के पिछडेपन की वजह हमेशा इस्लाम में ढूँढने की कोशिश की जाती रही है।
इस्लाम कहता है , पिता या पति की सम्पति की उत्तराधिकारी वो भी है । वो अपनी से शादी कर सकती है.हाँ, माँ-बाप की सहमती को शुभ माना गया है। उसे तलाक़ लेने का भी अधिकार है.विधवा महिला भी विवाह कर सकती है.अगर मुस्लिम महिला नौकरी या व्यवसाय करती है तो उसकी आय या जायदाद में उसके पिता, पति, पुत्र या भाई का कोई वैधानिक अधिकार हासिल नहीं रहता। साथ ही उसके भरण-पोषण का ज़िम्मा परिवार के पुरूष सदस्यों पर ही कायम रहता है।
इसके अतिरिक्त भी कई सुविधाएँ और अधिकार इस्लाम ने महिलाओं को दिए हैं जो इस बात के गवाह हैं कि उनके अनपढ़ रहने या पिछडेपन के लिए धर्म के नियम-कानून बाधक नहीं हैं।
इसके बावजूद उनकी हालत संतोषजनक कतई नहीं है.इसका मूल कारण पुरूष सत्तावादी समाज है। महिलाएं चाहे जिस वर्ग, वर्ण, समाज कि हों, सबसे ज्यादा उपेक्षित हैं, दमित हैं, पीड़ित हैं।
इनके उत्थान के लिए
बाबा साहब भीम राव आंबेडकर ने महिलाओं के लिए आरक्षण की वकालत की थी।
महात्मा गाँधी ने देश के उत्थान को नारी के उत्थान के साथ जोड़ा था।
पहली महिला न्यायाधीश बी फातिमा , राजनेता मोहसिना किदवई , नजमा हेपतुल्लाह , समाज-सेविका -अभिनेत्री शबाना आज़मी, सौन्दर्य की महारती शहनाज़ हुसैन, नाट्यकर्मी नादिरा बब्बर, पूर्व महिला हाकी कप्तान रजिया जैदी, टेनिस सितारा सानिया मिर्जा, गायन में मकाम-बेगम अख्तर, परवीन वैगेरह , साहित्य-अदब में नासिर शर्मा, मेहरून निसा परवेज़, इस्मत चुगताई, कुर्रतुल ऍन हैदर तो पत्रकारिता में सादिया देहलवी और सीमा मुस्तफा जैसे कुछ और नाम लिए जा सकते हैं, जो इस बात के साक्ष्य हो ही सकते हैं की यदि इन औरतों को भी उचित अवसर मिले तो वो भी देश-समाज की तरक्की में उचित भागीदारी निभा सकती हैं।
लेकिन सच तो यह है कि फातिमा बी या सानिया या मोहसिना जैसी महिलाओं का प्रतिशत बमुश्किल इक भी नहीं है। अनगिनत शाहबानो, अमीना और कनीज़ अँधेरी सुरंग में रास्ता तलाश कर रही हैं।
मुस्लिम महिलाओं के पिछडेपन की वाहिद वजह उनके बीच शिक्षा का प्रचार-प्रसार का न होना है। हर दौर में अनपढ़ को बेवकूफ बनाया गया है। अनपढ़ रहकर जीना कितना मुहाल है, ये अनपढ़ ही जानते हैं। पढ़े-लिखों के बीच उठने-बैठने में , उनसे सामंजस्य स्थापित करने में बहुत कठिनाई दरपेश रहती है। मुस्लिम औरतों का इस वजह्कर चौतरफा विकास नहीं हो पाता। वो हर क्षेत्र में पिछड़ जाती हैं। प्राय:कम उम्र में उनकी शादी कर दी जाती है। शादी के बाद शरू होता है, घर-ग्रहस्ती का जंजाल। फिर तो पढ़ाई का सवाल ही नहीं। ग़लत नहीं कहा गया है कि पहली शिक्षक माँ होती है। लेकिन इन मुस्लिम औरतों कि बदकिस्मती है कि वोह चाह कर भी अपने बच्चों को क ख ग या अलिफ़ बे से पहचान नहीं करा पातीं।
परदा-प्रथा इनके अनपढ़ रहने के कारकों में अहम् है.ये कहना काफ़ी हद तक सही है.उसे घरेलु शिक्षा-दीक्षा तक सिमित कर दिया गया है.और ये शिक्षा-दीक्षा भी सभी को नसीब नहीं.पढने के लिए महिलाओं को बहार भेजना मुस्लिम अपनी तौहीन समझते हैं.और इसे धर्म-सम्मत भी मानते हैं.हर मामले में धर्म को घसीट लाना कहाँ कि अक्लमंदी है.जबकि इस्लाम के शुरूआती समय में भी औरतें घर-बहार हर क्षेत्र में सक्रीय रही हैं.इस्लाम में महिलाओं पर परदा जायज़ करार दिया तो है लेकिन इसका अर्थ कतई ये नहीं है कि चौबीस घंटे वो बुर्के में धनकी-छुपी रहें॥ बुर्का या नकाब का चलन तो बहुत बाद में आया.इस्लाम कहता है कि ऐसे लिबास न पहनो। जिससे शरीर का कोई भाग नज़र आ जाए या ऐसे चुस्त कपड़े मत पहनो जिससे बदन का आकार-रूप स्पष्ट हो अर्थात अश्लीलता न टपके। इसलिए पैगम्बर हज़रत मोहम्मद के समय औरतें सर पर छादर ओढ़ लिया करती थीं.कुरान में दर्ज है , पैगम्बर (हज़रत मोहम्मद) अपनी बीबियों, लड़कियों और औरतों से कह दो कि घर से बाहर निकलते वक्त अपने सर पर छादरें डाल लिया करें।
ईरान के चर्चित शासक इमाम खुमैनी ने भी बुर्का-प्रथा का अंत कर औरतों को चादर कि ताकीद कि थी.पैगम्बर के समय मुस्लिम औरतें जंग के मैदान तक सक्रीय थीं.लेकिन कालांतर में पुरूष-वर्चस्व ने उसे किचन तक प्रतिबंधित करने कि कोशिश कि और काफ़ी हद तक कामयाबी भी हासिल कर ली। कई मुस्लिम देश ऐसे हैं जहाँ महिलाएं हर क्षेत्र में सक्रीय हैं.लेकिन विश्व कि सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले धर्म-निरपेक्ष तथा गणतंत्र भारत में उसकी स्थिति पिंजडे में बंद परिंदे कि क्यों?
इसका जिम्मेदार मुल्ला-मौलवी और पुरूष प्रधान समाज ही नहीं स्वयं महिलाएं भी हैं जो साहस और एकजुटता का परिचय नहीं देतीं।
ज़रूरत है इक बी आपा की जिन्होंने अलीगढ में स्कूल कालेज की स्थापना की थी ।
40 comments:
बहुत उम्दा आलेख!!
तुमने अगर इक मर्द को पढाया तो मात्र इक व्यक्ति को पढाया। लेकिन अगर इक औरत को पढाया तो इक खानदान को और इक नस्ल को पढाया।
--क्या बात है!!
बहुत आभार इस आलेख.
शहरोज भाई !
शिक्षक दिवस के अवसर पर सामयिक विषय चुना है आपने, मुस्लिम समुदाय में शिक्षा की कमी इसके विकास की सबसे बड़ी बाधा है ! किसी भी देश और कौम का भला बिना शिक्षा के सम्भव ही नही है, आपके इस लेख से बहुतों की गलतफहमियां दूर होंगी !
बहुत अच्छा और भाव पूर्ण लिखा है
जारी रखें
बहुत अच्छा और प्रासंगिक लेख।
इसका जिम्मेदार स्वयं महिलाएं भी हैं जो साहस और एकजुटता का परिचय नहीं देतीं।
ज़रूरत है इक बी आपा की जिन्होंने अलीगढ में स्कूल कालेज की स्थापना की थी ।.......
sahi farmaya,aaj ke vishesh din ek sahi mudda uthaya,kaum koi bhi ho,shikshaa zaruri hai aur pahle khud jaagruk hona hai
इस्लाम में इल्म को बहुत अहमियत दी गई है...मौलवियों का भी फर्ज़ है कि वो नमाज़ के बाद अफ़राद को इल्म के बारे में बताएं और अपने बच्चों को ख़ासकर लड़कियों की तालीम पर ज़ोर दें...
apka bloog dekh accha lika hai aap nai ramjan ki sath sath aap ko lakh kay liya dhyanywad sacmuch muslim ladikio ko siska ka awsar diya jana chahia
एक बेहतरीन आलेख !
सुजाता
शहरोज भाई, आप ने यह आलेख लिख कर बहुत बड़ा काम किया है।
शहरोज़ भाई ने बहुत दुरुस्त मसले को उठाया है..असल मैं ये एक बुनियादी बात है,, ये बात सिर्फ इसलाम मैं ही नहीं बाकि अन्य धर्मों मैं भी है.. आदमी औरत के व्यक्तिगत लडाई झगडों को अब शिक्षा पर लाद दिया जाये ये गलत है.. गलत ये है.. कि हम अपने व्यक्तिगत मामलों के कारण अन्य देशों से पिछडे हुए हैं.शिक्षा के मामले मैं चाहे "कुरान ऐ मजीद" हो अथवा.हिन्दू संस्कृति..सभी दिल खोलकर यह कहते हैं कि..यह जीवन की बहुत ज़रूरी चीज़ है... बकौल रघुपति सहाय फिराक साहब,, "भारत की मुसलमान महिलाएं अरबी मैं कुरान पढ़ेंगी.उर्दू मैं समझेंगी, हिंदी मैं समझायेंगी और अंग्रेजी मैं इसके अनुवाद करके कुरान को अनूठी पुस्तक साबित कर देंगी.." और महान दार्शनिक कृष्णमूर्ति की अनुसार.भारत का भाग्य अब महिलाएं ही बदलेंगी..जैशंकर प्रसाद के अनुसार,,
नारी तुम ही पालनकर्ता, नारी तुम ही जननी
तुम कहदो तो कथनी, तुम करदो तो करनी..
जैसे की एक दोहा इसके बारे मैं अत्यंत भ्रांतियां फैली हैं.मगर वो बिलकुल अलग है,, अपनी भ्रांतियों से अगर किसी ने तरीके से रामायण पढ़ी हो तो खुद ब खुद समझ जायेंगे..
ढोर गंवार शुद्र पशु नारी..
सकल प्रताड़ना के अधिकारी.
शहरोज़ भाई अत्यंत विद्वान हैं.. और हर बार नए विषय उठाते हैं.. यह बहुत गंभीर मसला है.. और अच्छी बात है कि..ये अपने वर्ग के साथ दोसरे को भी ध्यान मैं बनाये रखते हैं.. मैं आभारी हूँ..
और आचार्य रजनीश की एक बात के साथ बात समाप्त करता हूँ..
"आने वाला वक़्त सिर्फ नारी का है..यदि किसान और नारी को उनका हक मिल गया तो.. यह देश चाँद मैं स्थापित हो जायेगा.."
शहरोज़ भाई!
सही मायनों में अवसरोंचित और बेहद ज़रूरी लेख लिखा आपने.
सच बात है कि औरत हो या मर्द, इस्लाम में हर किसी के लिए शिक्षा पर बेहद जोर दिया गया है.
लेकिन बदकिस्मती से हमारे ही कुछ रहबरों ने अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए इस सूत्र-वाक्य को सिर्फ मजहबी तालीम से जोड़ कर मुस्लिम समाज को अशिक्षा के गहरे अंधेरों में धकेल दिया.
लेकिन अब समय आ गया है कि हम इस्लाम कि सही व्याख्या करें और जाने और इन कथित रहबरों को दरकिनार करें ताकि मुस्लिम महिलायें ही नहीं मुस्लिम समाज भी समय के साथ कदम मिलाकर चल सके
एक नए अलख जगाने के लिए आपका शुक्रिया
shahroz sahab ne bahut maarke ki bat kahi hai,
mumkin hai kathmullaon ko inki baat nagawar lage lekin jo sach ki himayat karne wala b hoga aur islam ko janta hoga vo apki zaroor himayat karega.
बहुत ही तथ्य पूर्ण लेख ! सच मे ऐसे ही लेख हर धर्मों मे चल रहे कुछ एक आध लोगों की मानसिकता की पोल बेहतर तरह से खोल सकते हैं । सिर्फ़ चन्द कट्टर्वादी सोचों ने हर मजहब को एक सीमित दायरे मे बाँध रखा है ।
सटीक लेख......
Naman..
तुमने अगर इक मर्द को पढाया तो मात्र इक व्यक्ति को पढाया। लेकिन अगर इक औरत को पढाया तो इक खानदान को और इक नस्ल को पढाया।
आपसे सहमत हूँ एक औरत को पढ़ना वाकई एक नस्ल को पढाना होता है ..काफी अच्छा लिखा आपने
बहुत ही स्पष्ट लेख है। इस सटीक विष्लेशण के लिए आप निश्चय ही बधाई तथा प्रशंसा के पात्र हैं। लोगों के मन में इस्लाम के बारे में एक गलत अवधारणा है कि इस्लाम महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा कम महत्व देता है या कम अधिकार देता है। इस लेख से ऐसी गलतफ़हमियाँ दूर होंगी।
SHAHROJJI
BAHUT BADHIYA. EKDUM THIK KAHA H K EK AURAT PADHTI H TO PURA PARIWAR PADHTA H. MUSLIM MAHILAYEN PADH JAYEN TO BADA KAAM HOGA
APKE PRAYASON KE LIYE SADHUWAD.
DR. BHANU PRATAP SINGH
AGRA
saहरोज जी बेबाक बोलना और िलखना सब के बस की बात नहीं होती। खासकर जब मामला महजब से जुड़ा हो। लेिकन उसकी िवसंगितयों,िवकृितयों और िवडंबना पर चोट िकये िबना सभ्य समाज की पिरकल्पना भी संभव नहीं है। अापने वह माद्दा िदखाया है। अाप पायेंगे िक अापकी सोच से काफी लोग वास्ता रखते हैं बस अापकी राह पकड़ने से डरते हैं।
Bhai Sahi Likha Hai
T M Zeyaul Haque
Bhai Sahi Likha Hai
Bhai Sahi Likha Hai
Bhai Sahi Likha Hai
itne gambheer mudde par itne achhe shabdon ke chayan karte hue baat ko bahut savdhani se kaha hai
aurat ko padhana waqayi nasl ko padhana hai
शहरोज भाई मुसिलम औरतों के अनपढ़ होने का दोष िकसी एक पर नहीं मढ़ा जा सकता। हमें चंद सािनया िमजाॆ और शबाना अाजमी जैसे िवशाल वृक्षों की जरूरत नहीं। हमें जरूरत है एक पूरी एक पीढ़ी की। उस पौध की जो िहन्दुस्तान का मुस्तकिबल बने।
शहरोज भाई मुसिलम औरतों के अनपढ़ होने का दोष िकसी एक पर नहीं मढ़ा जा सकता। हमें चंद सािनया िमजाॆ और शबाना अाजमी जैसे िवशाल वृक्षों की जरूरत नहीं। हमें जरूरत है एक पूरी एक पीढ़ी की। उस पौध की जो िहन्दुस्तान का मुस्तकिबल बने।
जनाब शहरोज़ साहब
इस्लाम में औरतों के लिए जिस्म के उतने हिस्से का ढका होना ज़रूरी है जितना नमाज़ की हालत में लाज़मी है. कुरआन मजीद में ऐसी कोई आयत नहीं है जिसमें आँ-हज़रत से अल्लाह ने फरमाया हो कि अपनी बीवियों, लड़कियों और औरतों से कह दो कि बाहर निकलें तो चादर ओढ़ कर निकालें. वैसे ये दुरुस्त है कि औरत के लिए चादर ओढ़ना काफ़ी है. कुरआन मजीद की रोशनी में देखा जा सकता है कि मुबाहले के लिए आँ-हज़रत बीबी फातिमा को भी नजरानियों के भरे मजमे में महज़ एक चादर के परदे में ले गए थे. बुर्का या नकाब जैसी कोई चीज़ उस ज़माने में थी ही नहीं. फिर जंगों में औरतें भी ज़ख्मियों की मरहम-पट्टी के लिए मौजूद रहती थीं.ख़ुद बीबी फातिमा ने उहद में आँ-हज़रत की मरहम-पट्टी की थी.
डॉ. परवेज़ फ़ातिमा
जनाब शहरोज़ साहब
इस्लाम में औरतों के लिए जिस्म के उतने हिस्से का ढका होना ज़रूरी है जितना नमाज़ की हालत में लाज़मी है. कुरआन मजीद में ऐसी कोई आयत नहीं है जिसमें आँ-हज़रत से अल्लाह ने फरमाया हो कि अपनी बीवियों, लड़कियों और औरतों से कह दो कि बाहर निकलें तो चादर ओढ़ कर निकालें. वैसे ये दुरुस्त है कि औरत के लिए चादर ओढ़ना काफ़ी है. कुरआन मजीद की रोशनी में देखा जा सकता है कि मुबाहले के लिए आँ-हज़रत बीबी फातिमा को भी नजरानियों के भरे मजमे में महज़ एक चादर के परदे में ले गए थे. बुर्का या नकाब जैसी कोई चीज़ उस ज़माने में थी ही नहीं. फिर जंगों में औरतें भी ज़ख्मियों की मरहम-पट्टी के लिए मौजूद रहती थीं.ख़ुद बीबी फातिमा ने उहद में आँ-हज़रत की मरहम-पट्टी की थी.
डॉ. परवेज़ फ़ातिमा
बहुत बढीया सवाल उढाया है।
पूरुषों मे भी अभी कई लोग(ज्यादातर) अनपढ हैं।
पर धीरे धीरे सब ठीक होता चला जाएगा।
खूब अच्छा लेख लीखा है।
बहुत खूब दोस्त, इंसान को आप जैसे लोगों की ही जरुरत है। जब लोग आप जैसा सोचने लगते है तो वो संप्रदाय मजहब से उपर उठ जाते हैं। सच तो यह है शहरोज भाई कल के किसी भी बात को हम आज के चश्मे से देख कर उसे बुरा न कहें। और साथ में यह भी हर वाक्ये की व्याख्या नए संदर्भ एवं समय में बदलनी चाहिए। परम्पराओं को तोड़ो नहीं उसे सुधारों । मैं तो मानता हूं जो मनुष्य का हित न कर सके वह धर्म नहीं। इल्म ही मनुष्य को जानवर से अलग करता है तो हम क्यों नहीं औरतों को जो हमारी आधा हिस्सा है मनुष्य के बोध से वंचित रखते हैं। रही कपड़े पहने की बात तो दोस्त
मनुष्य जानवर से इतर कब हुआ
जब उसे नंगे होने का एहसास हुआ
पुन: उसी राह
अब तो कम होते कपड़े में आधुनिकता नजर आती है
खैर ये तो अपना अपना नजरिया होता है। दिखने वाली सुंदरता सुंदर होती है पर जो न देखी गई वो दैवीय होती है। घुंघट में औरत....आप कल्पना कर सकते हो अपने कल्पना को विस्तृत आयाम दे सकते हो। मुलाकात होती रहेगी दोस्त
शुभ विदा
some correction dear
क्यों नहीं औरतों को जो हमारी आधा हिस्सा
के बदल पढ़ा जाए
तो क्यों, औरते जो हमारा आधा हिस्सा है-----
shiksha ke alakh ko jagane ke liye ek naari ko shikshit hona parmavshyak hai . aapki baat sbne suni hogi is aasha ke sath
शहरोज जी, इस मुहिम की जरूरत है...
सच कहें तो इसी मुहिम की जरूरत है...
सेल्यूट
खबरी
9811852336
आपका नमन.....आपने इक संजीदा मुद्दे को इतनी अच्छी तरह उठाया और इतना सार्थक लिखा है कि उसके बाद कहने को कुछ नही बच जाता.
बिल्कुल सही कहा,जो औरतें पीढियां बनाती हैं,बच्चों में संस्कार की नींव डालती हैं वे ही अगर अशिक्षित हों तो उस कच्ची नींव पर कितने बुलंद ईमारत की कल्पना की जा सकती है.यूँ तो हिन्दुस्तान में आज कल के उच्च, मध्यम तथा कुछ हद तक निम्न मध्यम वर्ग को छोड़ कर पूरी महिला आबादी अशिक्षित ,शोषित है और उसमे भी मुस्लिम महिलाओं की स्थिति अत्यन्त सोचनीय है.दरअसल पुरूष प्रधान यह समाज जो सदियों से औरतों को जूते की नोक पर रखने का आदी है,वह जनता है कि शिक्षा स्त्रियों को जूते के नीचे से निकलकर बराबरी में ला खड़ा करेगा और पुरूष अहम् यह बर्दाश्त न कर पायेगा.स्त्रियों के अन्दर छुपी बसी जो प्रतिभा की आंच है,उस से पुरूष हमेशा सहमा रहता है,जबकि गृहस्थी की गाड़ी का एक पहिया यदि बराबर रूप से मजबूत हुआ तो सिर्फ़ परिवार ही नही पूरे समुदाय और देश की तरक्की होगी.
इसी मुस्लिम समुदाय में रजिया सुलतान जैसी प्रशाशिका भी हुई है जिनसे हम आज भी प्रेरणा लेते हैं.
accha likha hai shahroz ji,
abhi bohot kuch karna hai samaja ke liye,
yeh lekh aik kadi hai usi main,
mubarakbad is aik qadam ke liye
नारी के उत्थान के लिये
हर प्रयास और सहयोग की आवस्यकता है
- आपका आलेख बढिया है
- लावण्या
वाह क्या बात है भाई..
मुस्लिम समाज में आप सरीखे प्रगतिशील लोगों की बहुत जरूरत है.
badhaii
samajik vishay par bahut hi suljha hua lekh. Aise vishayon par jaagrookta laane wale lekho ke dwara samajik badlaav laane me bahut madad milegi
भारतीय सोच, समझ और सरोकार रखने वाले पत्रकारों, चिंतकों और विश्लेषकों का आनलाइन मीडिया मंच- तेज़ न्यूज़ डॉट कॉम. साहस के साथ सच कहने, , मनुष्यता के साथ खड़े होने और बेबाक बोल बोलने के लिए । अपनी प्रोफाइल के साथ अपने लेख / रिपोर्ट / विचारो को एक स्थान पर लाने का प्रयास ताकि ज्यादा से ज्यादा हिंदी भाषी लोगों को देश दुनिया की खबरे मिल सके .न्यूज़ पोर्टल का मुख्य उद्देशय भारतीय भाषाओ का प्रचार - प्रसार करना | इस पोर्टल में देश के कई जाने माने पत्रकारों के अलावा / जाने माने लेखक / और समाज सेवा से जुड़े लोगो की सहायता से रोजाना की पल पल की खबरों के अलावा ताजे घटनाक्रमों पर लेख होंगे | यही नहीं देश के कोने कोने से निकलने वाले समाचार पत्रों / पत्रिकाओ / को अपने पोर्टल में स्थान दे कर समाचारों को जन जन तक पहुचाये | आप भी इस महान यज्ञ में अपना योगदान दीजिए।Contact at : Teznews@gmail.com www.Teznews.com
जय हिन्द, मुसलमान अल्लाह के खरीदे हुए हत्यारे हैं
आप लिखते रहिये ये मेरा आपसे सलाह है बहुत सही साहब,,
धन्यवाद जी|
एक टिप्पणी भेजें