शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

बोलना चाहता हूँ प्रतिबंधित कर दिया जाता हूँ

इधर इतना कुछ टूटा, इतना बिखरा कि सँभालते- सँभालते .बार-बार इक शे'र जेहन में आता रहा :

हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता

जिस इलाके में रहता हूँ, इसे ही ख़ास मानसिकता में पल्लवित पत्रकार आतंकवादियों का अड्डा बताते हैं।
अनगिनत पढने-लिखने वाले छात्रों की गिरफ्तारी हो चुकी है।
दहशत और संशय की तलवार अब भी गर्दनों पर लटकी है .
पुलिसिया बर्बरता की ताब न लाकर कोई भी नया मास्टर-मायंड हो सकता है।

ईद आयी ज़रूर पर मुहर्रम की तरह गुज़र गयी।
यही हाल दशहरा-दीपावली का होगा।
जो कुछ हुआ या जो कुछ दिल्ली से लेकर साबरकांठा , मालेगाँव , कर्नाटक और कंधमाल में हो रहा है, बस यही कहने का मन है:
हे ईश्वर इन्हें क्षमा मत करना क्योंकि ये अच्छी तरह जानते हैं कि ये क्या कर रहे हैं।

साथियों ज़रा हटकर दो कविता पेश-खिदमत है:



हम सच बोलते
वोह झूठ की तुरपाई कर देते।

हम घरोंदे के लिए तिनके सहेजते-संवारते
वोह उसे शो-पीस के लिए सरिया लेते।

हम ब्यान देते
वोह चुप रहते।
वोह झूठ बोलते
सब वाह! वाह!
कह उठ ते ।



कविता लिखना चाहता हूँ
शर्त रख दी जाती है
मुसलमान हो तो
कुरआन-हदीस पर मत लिखना।

हिंदू हो तो
अयोध्या छोड़कर सारी रामायण
बांच सकते हो।

ईसाई हो तो
ईसा के पिता का
सवाल नहीं उठाओगे ।

मैं बोलना चाहता हूँ
तो प्रतिबंधित कर दिया जाता हूँ।

28 comments:

manvinder bhimber ने कहा…

apke man ka bhojh kuch halka hua hoga ?????? achcha likha hai

Anil Pusadkar ने कहा…

sach par hamesha pehra lagane ki koshish hoti rahi hai,magar vo samne aata raha hai,jaise aaj aaya hai.shabash shahroz.salaam karta hu aapki kalam ko.

राज भाटिय़ा ने कहा…

यह हाल पुरे भारत का है, आज ना तो ईद ईद रही है ना दिपावली दिपावली रही है.... शेतान तो अपना काम कर रहा है, लेकिन हमे भी तो उस ऊपर वाले ने दिमाग दिया है, क्यो नही हम आपिस मे बेठ कर अपिस मे सलाह कर के एक होते है, क्यो इन शेतानो के पेरो की फ़ुटबाल की तरह से ऊछलते फ़िरते है, ना मेरे धर्म को कोई खतरा है, ना आप के धर्म को, यह धर्म किसी के खराब होने से खराब नही होने वाला.
आओ सब मिल कर एक नया भारत बनाये, आओ सब मिल कर लडे इन शेतानो से...
आओ हम मिल कर एक दुसरे के आंसु पोंछे...
भाई आप का दर्द मेरा दर्द है,

बेनामी ने कहा…

सुन्दर कविता कही । हम सुनेंगे ,तुमसे , कुछ भी।
सप्रेम,
अफ़लातून

श्रद्धा जैन ने कहा…

ye haalaat pure bharat mein hai
kal hi ek dost ne bataya jodhpur ke mandir mein hue haadse ke bare mein duk h hota hai jaankar

pratibadh kaha nahi hai magar jo pratibandh tod kar khud mein magan ho jata hai wahi shayad apni pahchaan bana pata hai
khud se nazren mila pata hai

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

bahut achcha likha hai aapney.

Satish Saxena ने कहा…

बेहतरीन लिखा है शहरोज़ भाई ! समाज के लगाये प्रतिवंधों की चर्चा सामयिक उठाई है, और शत प्रतिशत सच है !
एक अच्छी पोस्ट के लिए धन्यवाद !

शायदा ने कहा…

प्रतिबंधित होकर भी बोलें...लिखें वरना हमेशा ईद मुहर्रम ही बनकर आती रहेगी।

Udan Tashtari ने कहा…

क्या बात है!! एक घुटन का अहसास-बहुत उम्दा प्रस्तुति!!

rakhshanda ने कहा…

बहुत खूब, आज के हालत को पूरी तरह सामने रखती हुयी एक बेहद शानदार नज़्म...घुट घुट के जीते इंसानों का दर्द आपने बड़ी शिद्दत से महसूस किया है, लेकिन शहरोज़ साहब, वो दर्द इस से भी ज़्यादा शदीद है, जिसे हम चाहें भी तो महसूस नही कर सकते...बेगुनाह होते हुए गुनाहगार होने का दर्द, इंसान के अन्दर नासूर बन जाता है...बहुत शानदार

Unknown ने कहा…

bahut khoob.
allah ham sabhi ko mulk k har fard ko apne hifazat me rakhe.aamin.
aapne achchi bat

रंजन राजन ने कहा…

क्या बात है...
बोले जी बोलो, हम हैं सुनने के लिए। मन में जितनी भी पीड़ा हो ब्लाग पर उगलते रहो। किसने रोका है...
नवरात्रि की कोटि-कोटि शुभकामनाएं। मां दुर्गा आपकी तमाम मनोकामनाएं पूरी करें। यूं ही लिखते रहें और दूसरों को भी अपनी प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित करते रहें, सदियों तक...

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

बहुत अच्छा आलेख और कविताएं हैं शहरोज़ जी। पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूं। पर एक कमी लगी। आपके लेखन में अकेलापन और उससे उपजी हताशा और निराशा हावी है। आप जैसा सोचने वाले लाखों नहीं करोड़ों हैं इस देश में और वो भी हर समुदाय में। जैसे पूरी भरी बस को दो-चार ग़ुंडे लूट लेते हैं वैसे ही देश को भी लूटने का प्रयास होरहा है।
आवश्यकता संगठित और सुनियोजित ढंग से इन ग़ुंडों का इलाज करने की है।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

hatprabh hun is vyavastha par,jisne khushiyon par pratibandh laga diya,bhawnaaon ko jakad diya aur katghare me daal diya.....
maun hun main bhi ....... aap apni lekhni ko satya ki syaahi se sarabor karte rahen,kuch to hoga,koi to jagega..

वीनस केसरी ने कहा…

दूसरी कविता विशेष कर अच्छी लगी


वीनस केसरी

हिन्दीवाणी ने कहा…

शहरोज भाई, बस इसी तरह लिखते रहें। आपकी संवेदनाओं को सलाम। ऐसी रचनाओं का शिद्दत से इंतजार रहेगा।

बेनामी ने कहा…

apka blog apki pragatisheelta aur sahas ka parichayak hai.

ज़ाकिर हुसैन ने कहा…

रक्षंदा जी ने मेरे मुहं की बात छीन ली.
बहुत सटीक लिखा है आपने.
लेकिन शहरोज़ भाई, प्रतिबंधों के बावजूद हमें लिखना होगा............
वरना आने वाली नस्लें हमें माफ नहीं कर पाएँगी.

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

आपने बिल्कुल सही कहा...लेकिन हमें हालात का सामना तो करना ही होगा...हंसकर करें या रोकर...

बेनामी ने कहा…

प्राचीन मनीषियों ने कहा है कि यह संसार विचित्र है और इसी विचित्रता में इसकी खूबी है । अगर यहां किसी एक के सोचे अनुसार होने लगे तो यह नीरस हो जायेगा । यहां एक तरफ दूसरे के लिये अपनी जान देने वाले हैं तो दूसरी ओर दूसरों की जान लेने वाले भी हैं । अच्छा लगे या न इसे स्वीकरना ही होता है । इस बाबत मैंने अपने दूसरे ब्ला़ग पर कुछ लिखा है (vichaarsankalan.wordpress.com) ।
आपकी टिप्पणी मिली, धन्यवाद (hinditathaakuchhaur.wordpress.com) - योगेन्द्र जोशी

बेनामी ने कहा…

kya khub likha

report ke sath
kawita

what an aidia sir

dr.sahu

jo bhi likha sach likha
likh bhi kya sakta tha

दिगम्बर नासवा ने कहा…

शहरोज जी
साधुवाद आप इतना अच्छा और खुल के लिखते हैं

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

सामयिक चिंतन के साथ सुंदर काव्यबोध
आपको बधाई

RAJ SINH ने कहा…

kya abhvyakti hai !

RAJ SINH ने कहा…

AAJ TO BAS BOLNE PE LAG GAYA PRATIBANDH HAI,

MERE PURKHON SE TO LE TALVAR BULVAYA GAYA.

shama ने कहा…

Hata do pratibandh!!Bandh gaye to bandhe reh jaoge!!Ho jao nidar...
Blogpe aaneke liye dhanyawad...
Gam me doobke nahee likh rahee...tatasth hun, kinareparse ek bahawka bayan de rahee hun...abhi zindaa hun! Balki haalhee me ek movie making ka course kiya, apneehee kahanipe ek short filmbhee bana daalee...gar us waqt kya halaat the, sunoge to khud dehal jaoge!!
Hamare yahan aksar tyohar dhoomdhaamse mante hain...kuchh ilaqe hain jahan in batonkaa asar hai...kaam hamehee karna hai, hamara padoseeee hamare gharka shuddheekaran to nahee karega...aap likhte rahen, ye aap bohot achha kaam kar rahe hain!

Puja Upadhyay ने कहा…

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए.
दुष्यंत की ये पंक्तियाँ याद आ गई आपकी पोस्ट पढ़ कर. लेकिन कहना जरूरी है, बात करना जरूरी है...तभी ईद दिवाली और दशहरा त्योहारों की तरह मन सकेंगे. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई, अच्छा लिखते हैं आप. सही सवाल उठाते हैं, सही विवेचना करते हैं. लिखते रहें, मेरी शुभकामनाएं

BrijmohanShrivastava ने कहा…

मुमकिन है कल जुबानों कलम पर हों बंदिशें
आंखों को गुफ्तगू का सलीका सिखाइए
दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ ""

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