रविवार, 1 नवंबर 2009

तेरा साया




साथियों, यूँ क्षमा-याचना महज़ औपचारिकता होगी लेकिन बात सच है.और धतूरे की तिक्ता कैसी भी हो, वजूद उसका अपनी जगह अटल है,और ज़िन्दगी तो कहीं धूप-छाओं.ग़म की चाशनी में ही तो सुख का सुस्वादु लड्डू मयस्सर होता है.और साथी, आप से अलग कहाँ रह पाया सुकून से.ज़माने बाद आपके बीच आया हूँ.स्थितियां ऐसी रहीं कि गूगल महाराज के दर्शन बकौल हिन्दी के ख्यात कवि अशोक वाजपई कभीकभार ही सम्भव होता रहा .और फुर्सत...बराय नाम .खैर! माह-भर से माँ की सेवा में हूँ.सेवा क्या बस वक्त का बहाना है.इतनी जल्दी इस अजीम और फ़लक्बोस साए से वंचित होना कौन चाहेगा! ज़ाकिर भी नहीं चाहते थे। दिल्ली के पन्त अस्पताल में उनकी माँ बेहोश रहीं और फिर हम-सब बिलबिलाते-सुबकते ही रहे.वो जा चुकी थीं।
मेरी अम्मी को ईद की रात सेवियर अटक हुआ.ईद लम्हे में मुहर्रम हुआ।
हफ्ते-भर स्थानीय चिकित्सकों के सहारे रहीं.२७ सितम्बर को लोग उन्हें लेकर पटना दौडे .दशहरे का दिन.शहर हुजूम से लबरेज़!मैं रात दस बजे स्टेशन पंहुचा.और बमुश्किल एक ऑटो लेकर इंदिरा गांधी हिरदय संस्थान पहुंचा.अब तक घड़ी में बारह बज चुके थे.अम्मी नीम-बेहोशी में.उनकी रगों में पहुँचता बोतल सिरहाने लटका था.हफ्ते बाद एक रोज़ डॉक्टर ने अचानक मुझे बुलाकर सकते में डाल दिया .बेटा इनकी दोनों किडनी फेल है!!! हार्ट की हालत अब खतरे से बाहर है.दवा चलती रहेगी.आप इन्हीं कहीं और दिखला लें तदुपरांत घर ले जा सकते हैं.हम भाई उन्हें लेकर शहर के प्रसिद्ध चिकित्सक यूं.एस.राय के यहाँ पहुंचे.और दवाओं की थैली लेकर अंतता गृह-नगर शेरघाटी हम आ गए। आकर अनहोनी होते-होते टली.तीन-रात ...ओह!! कैसी गुजरी.आवाज़ बंद और न अन्न-जल उनहोंने ग्रहण किया.परम्परानुसार कुरान की सूरत यासीन की तिलावत जारी रही.समग्र समां और श्रद्धा के साथ.आख़िर खुदा रहीम सिद्ध हुआ..निसंदेह इसे चमत्कार कह्सकते है..हर कोई निराश..लेकिब अब अम्मी ठीक हैं.बोलती भी हैं.हाँ! नित्य-कर्मों के लिए दुसरे पर निर्भर हैं.चल-फिर नहीं सकतीं.हमइ है. बच्चों के लिए यही काफ़ी है.अब आस है माँ रहेंगी और.......अल्लाह से दुआ है...ये आस कायम रहे.......

इसी दरम्यान बाल-सखा इमरान अली से भेंट हो गई.वो रंगों की दुन्या में हमारे मंझले भाई उर्दू कथाकार और रंगकर्मी शहबाज़ रिजवी के शिष्य रहे.पर घर में आने-जाने के कारण हम से याराना रहा.जनाब इन दिनों शेरघाटी को जिला बनाओ आन्दोलन के सूत्रधार बना हुए हैं.पेशे से विज्ञापन -एजेंसी के संचालक रहे इमरान की अभिरुचि साहित्य और कला के खेत्र में भी खूब रही है.कुछ भोजपुरी काम कर चुके हैं.चर्चित लेखक संजय सहाय की कहानी पर बनी फ़िल्म पतंग में भी अभिनय कर चुके हैं.स्थानीय नगर पंचायत के निर्वाचित सदस्य भी रहे.मैं इन्हें शेरघाटी का जीवित संग्रहालय कहता हूँ.एक शाम मुझे पकड़ कर घर ले गए और मुझे हैरत में डाल दिया.कहा, इस फ़िल्म को देखो, चूं-चपाड़ मत करना!
मैं उनके कमाल को देखता ही रह गया.भले इस शहर की एतिहासिक सास्कृतिक थाती रही है.लेकिन वर्तमान में ये शहर आज भी मौलिक सुविधाओं से वंचित है.ये दीगर है कि ईद -दीपावली मिलकर मनाया जाता है तो कभी मुहर्रम और रामनावीं में तनाव भी हो जाता है . बावजूद सांप्रदायिक -सद्भाव अपनी जगह स्थिर है।
खैर! सीमित संसाधनों में निर्मित इस फ़िल्म का आनंद आप ज़रूर लें : फ़िल्म पाँच हिस्से में है,जागो-१,jago -२ ,जागो-३,जागो-४,जागो-5

4 comments:

Satish Saxena ने कहा…

इस महान दुःख में जाकिर भाई के साथ हैं ! ईश्वर उन्हें शक्ति दे !

Saleem Khan ने कहा…

satish saxena se sahmat!

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

वक़्त सभी कुछ दिखता है बस वही बात है की वो किस पर कितना मेहरबान है....
ऊपर वाला अब सब ठीक करे सबको उसकी रहमत मिले......सब उसकी साया मे पलें..........
aur apno ka saya hamesha sath rehta hai



माफ़ी चाहूंगा स्वास्थ्य ठीक ना रहने के कारण काफी समय से आपसे अलग रहा

अक्षय-मन "मन दर्पण" से

Unknown ने कहा…

jaago duniya ke saamne laakar aapne apne shahar sherghati ka qarz adaa kiya.shukriya kah ka kar aapka apman karna nahin chahta.

main bhai zaakir k saath hoon aur aapke bhi.

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