नीतीश के बहाने
माँ जैसी कालजयी कृती के रचयिता गोर्की अक्सर कहा करते थे ,मित्रता ऐसी करनी चाहिए जो आगे चलकर बाधक न बने.लेकिन बहुधा लोग भूल जाते हैं.अब देखिये न राज्यसभा के लिए संपन्न कुछ सदस्यों के चुनाव में पतली गली से कौन किधर गया, दीवार भी नहीं सूघ पायी.उधर अनुशासन का दंभ भरने वाली भाजपा इतनी सशंकित रही कि राजस्थान में उसने अपने विधायकों को आलीशान होटलों में क़ैद कर दिया इसलिए कि कहीं ऍन वक़्त पर कोई कहीं बिदक न जाय ! जेठमलानी साहब को जिताना जो था.और मोदी ने मित्रता धर्म निभा ही दिया , साहब जीत गए.
लेकिन इधर बिहार में हँसते-खिल-खिलाते दो मित्रों की छपी तस्वीर लोग पचा नहीं पाए.इस वजह कर भाजपा-जद [यु] के ख्यात रिश्ते में दरार पड़ गयी , ऐसा विश्लेषक मानते हैं.मामला तूल पकड़ता जा रहा है. संभावना जतलाई जा रही है कि नितीश सरकार से भाजपा समर्थन वापस ले सकती है.उधर नितीश के आशिक रो रहे हैं कि जिस जयश्री राम की चादर का दायरा बढाने में उन्होंने समय समय पर अवसर उपलब्ध कराये [वह अपने दिवंगत गुरु वी.पी.सिंह का उद्धरण देते हैं ] उसी चादर के एक टुकड़े ने उनके चेहरे पर कालिख पोत दी ! खुदा न खास्ता सरकार गयी तो नितीश गाते-गुनगुनाते फिरेंगे :
अगर मौजें डुबो देतीं तो कुछ तस्कीन हो जाती
किनारों ने डुबोया है, मुझे इस बात का ग़म है
कहावत है : अकेला चना भांड नहीं फोड़ता या एक से भले दो ! इस बिना पर मित्रता का जन्म होता है .व्यक्ती जानता है कि अकेलापन अभिशाप है और दूसरों का साथ वरदान ! वह मित्रों पर भरोसा करता है और भरोसे के एवाज़ में अपेक्षित व्यवहार चाहता है.दोस्ती वही जो परस्पर विश्वास और परस्पर हित का चिंतन करती हो.संसार के उद्भव से आज तक यही होता आया है.
लेकिन सत्ता की चाह में की गयी राजनितिक मित्रता के ऐसे कई दौर गुज़रे हैं, जहां पावर के लफड़े में कहाँ और किस जगह पुष्पहार में खंजर लटका होगा, पूर्वानुमान लगा पाना मुश्किल हो जाता है.क्या बिहार गए उदय ये जान पाए थे . जिनके वादे पर गए वही मित्र उन्हें दग़ा दे गए और लौट के उदय बेंगलेरु पहुंचे, बाकी बची थैली संभाले . दूसरी तरफ माल्या की थैली खूब काम आयी.
निति शतक का श्लोक है जिसका भावार्थ कुछ इस तरह होगा :
स्वार्थ मूलक मैत्री मध्यान्ह पूर्व की छाया के समान आरम्भ में बहुत विशाल होंकर क्रमश:क्षीण होती जाती है और सच्चे स्नेह भाव पर पनपी हुई मैत्री दोपहर बाद की संध्याकाल की छाया के समान शुरू में छोटी होंकर बाद में प्रतिपल बढ़ती जाती है.
यानी सहज वृद्धिशील मैत्री ही सच्ची मित्रता है.पर सियासी गलियारे में इस श्लोक पर कान धरने वाला कौन है ! अब देखिये न ! जिस अफज़ल गुरु की लंबित फांसी की सज़ा को जल्द से जल्द अंजाम तक पहुँचाने की मांग को लेकर भाजपा और उसके हितैषी रोज़ आसमान सर पर लिए घुमा करते हैं उसी के वकील रहे जेठमलानी साहब को भाजपा अपना सांसद बनाती है.और उसकी अगुवाई वर्तमान के कथित ह्रदय सम्राट नरेंद्र मोदी करते हैं.और हाँ अटल जी के खिलाफ लखनऊ में यही जेठमलानी जब चुनाव में खड़े थे तो उन्होंने संघ की जांघिया बानियान खूब उधेड़ी थी.
क्या कीजये गा जब खाने की बारी आती है तो सभी एक पांत में पालथी मार कर बैठ जाते हैं.न अछूत, न छूत ! कोई भेदभाव नहीं.न कोई बड़ा, न छोटा . गर्व से कहो हम हिन्दू हैं ! यानी भारतीय हैं !
संसदनामे की खबर रखने वाले एक मित्र ने अभी सूचित किया है कि नितीश और शरद को अब फ़र्क़ समझ में आ गया है जैसा कि गोल्ड स्मिथ कह गए हैं , जो मित्रता बराबर की नहीं होती उसका अंत हमेशा घृणा में होता है.अब आपको भी भाजपा-बसपा की यारी और बाद में पलट्वारी की याद आ गयी होगी.चचा ग़ालिब ने कहा था :
बेगानगी-ए-ख़ल्क़ से बेदिल न हो ग़ालिब
कोई नहीं तो तेरा तो, मेरी जान खुदा है !
लेकिन चचा भूल गए कि मनुष्य को इसी हांड-मांस की दुनिया में रहना है.उसे यहाँ के लोगों से वास्ता पड़ता है और बंधु-सखाओं से आशा व अपेक्षा करना ग़ैर-वाजिब भी नहीं ! इलियट को घोंट जाओ कि शायद सबसे आनंददायक मित्रताएं वे हैं जिनमें बड़ा मेल है, बड़ा झगडा है और फिर बड़ा प्यार ! मतलब यह कि दोस्ती में मेल, झगडे और प्यार के हिंडोले तो चल सकते हैं [उपेक्षा और असहयोग के नहीं ]. लेकिन होता यह है कि जब अग्निपरीक्षा की घड़ी आती है हम बाहर निकलने का दरवाज़ा टटोलने कगते हैं.
खैर ! चलते-चलते :
वफ़ा के नाम पर तुम क्यों संभलकर बैठ गए
तुम्हारी बात नहीं, बात है ज़माने की !
माँ जैसी कालजयी कृती के रचयिता गोर्की अक्सर कहा करते थे ,मित्रता ऐसी करनी चाहिए जो आगे चलकर बाधक न बने.लेकिन बहुधा लोग भूल जाते हैं.अब देखिये न राज्यसभा के लिए संपन्न कुछ सदस्यों के चुनाव में पतली गली से कौन किधर गया, दीवार भी नहीं सूघ पायी.उधर अनुशासन का दंभ भरने वाली भाजपा इतनी सशंकित रही कि राजस्थान में उसने अपने विधायकों को आलीशान होटलों में क़ैद कर दिया इसलिए कि कहीं ऍन वक़्त पर कोई कहीं बिदक न जाय ! जेठमलानी साहब को जिताना जो था.और मोदी ने मित्रता धर्म निभा ही दिया , साहब जीत गए.
लेकिन इधर बिहार में हँसते-खिल-खिलाते दो मित्रों की छपी तस्वीर लोग पचा नहीं पाए.इस वजह कर भाजपा-जद [यु] के ख्यात रिश्ते में दरार पड़ गयी , ऐसा विश्लेषक मानते हैं.मामला तूल पकड़ता जा रहा है. संभावना जतलाई जा रही है कि नितीश सरकार से भाजपा समर्थन वापस ले सकती है.उधर नितीश के आशिक रो रहे हैं कि जिस जयश्री राम की चादर का दायरा बढाने में उन्होंने समय समय पर अवसर उपलब्ध कराये [वह अपने दिवंगत गुरु वी.पी.सिंह का उद्धरण देते हैं ] उसी चादर के एक टुकड़े ने उनके चेहरे पर कालिख पोत दी ! खुदा न खास्ता सरकार गयी तो नितीश गाते-गुनगुनाते फिरेंगे :
अगर मौजें डुबो देतीं तो कुछ तस्कीन हो जाती
किनारों ने डुबोया है, मुझे इस बात का ग़म है
कहावत है : अकेला चना भांड नहीं फोड़ता या एक से भले दो ! इस बिना पर मित्रता का जन्म होता है .व्यक्ती जानता है कि अकेलापन अभिशाप है और दूसरों का साथ वरदान ! वह मित्रों पर भरोसा करता है और भरोसे के एवाज़ में अपेक्षित व्यवहार चाहता है.दोस्ती वही जो परस्पर विश्वास और परस्पर हित का चिंतन करती हो.संसार के उद्भव से आज तक यही होता आया है.
लेकिन सत्ता की चाह में की गयी राजनितिक मित्रता के ऐसे कई दौर गुज़रे हैं, जहां पावर के लफड़े में कहाँ और किस जगह पुष्पहार में खंजर लटका होगा, पूर्वानुमान लगा पाना मुश्किल हो जाता है.क्या बिहार गए उदय ये जान पाए थे . जिनके वादे पर गए वही मित्र उन्हें दग़ा दे गए और लौट के उदय बेंगलेरु पहुंचे, बाकी बची थैली संभाले . दूसरी तरफ माल्या की थैली खूब काम आयी.
निति शतक का श्लोक है जिसका भावार्थ कुछ इस तरह होगा :
स्वार्थ मूलक मैत्री मध्यान्ह पूर्व की छाया के समान आरम्भ में बहुत विशाल होंकर क्रमश:क्षीण होती जाती है और सच्चे स्नेह भाव पर पनपी हुई मैत्री दोपहर बाद की संध्याकाल की छाया के समान शुरू में छोटी होंकर बाद में प्रतिपल बढ़ती जाती है.
यानी सहज वृद्धिशील मैत्री ही सच्ची मित्रता है.पर सियासी गलियारे में इस श्लोक पर कान धरने वाला कौन है ! अब देखिये न ! जिस अफज़ल गुरु की लंबित फांसी की सज़ा को जल्द से जल्द अंजाम तक पहुँचाने की मांग को लेकर भाजपा और उसके हितैषी रोज़ आसमान सर पर लिए घुमा करते हैं उसी के वकील रहे जेठमलानी साहब को भाजपा अपना सांसद बनाती है.और उसकी अगुवाई वर्तमान के कथित ह्रदय सम्राट नरेंद्र मोदी करते हैं.और हाँ अटल जी के खिलाफ लखनऊ में यही जेठमलानी जब चुनाव में खड़े थे तो उन्होंने संघ की जांघिया बानियान खूब उधेड़ी थी.
क्या कीजये गा जब खाने की बारी आती है तो सभी एक पांत में पालथी मार कर बैठ जाते हैं.न अछूत, न छूत ! कोई भेदभाव नहीं.न कोई बड़ा, न छोटा . गर्व से कहो हम हिन्दू हैं ! यानी भारतीय हैं !
संसदनामे की खबर रखने वाले एक मित्र ने अभी सूचित किया है कि नितीश और शरद को अब फ़र्क़ समझ में आ गया है जैसा कि गोल्ड स्मिथ कह गए हैं , जो मित्रता बराबर की नहीं होती उसका अंत हमेशा घृणा में होता है.अब आपको भी भाजपा-बसपा की यारी और बाद में पलट्वारी की याद आ गयी होगी.चचा ग़ालिब ने कहा था :
बेगानगी-ए-ख़ल्क़ से बेदिल न हो ग़ालिब
कोई नहीं तो तेरा तो, मेरी जान खुदा है !
लेकिन चचा भूल गए कि मनुष्य को इसी हांड-मांस की दुनिया में रहना है.उसे यहाँ के लोगों से वास्ता पड़ता है और बंधु-सखाओं से आशा व अपेक्षा करना ग़ैर-वाजिब भी नहीं ! इलियट को घोंट जाओ कि शायद सबसे आनंददायक मित्रताएं वे हैं जिनमें बड़ा मेल है, बड़ा झगडा है और फिर बड़ा प्यार ! मतलब यह कि दोस्ती में मेल, झगडे और प्यार के हिंडोले तो चल सकते हैं [उपेक्षा और असहयोग के नहीं ]. लेकिन होता यह है कि जब अग्निपरीक्षा की घड़ी आती है हम बाहर निकलने का दरवाज़ा टटोलने कगते हैं.
खैर ! चलते-चलते :
वफ़ा के नाम पर तुम क्यों संभलकर बैठ गए
तुम्हारी बात नहीं, बात है ज़माने की !
29 comments:
dushmani jam kar karo par ye gunjaish rahe jab dost hon to sharminda na hon.
ye maamla siyasat ke saath aam zindagi mein bhi hai boss !! nice post.
nitish kee apni samajh hai aur bjp ki apni malai donon ne khaayi lekin ab poora ka poora akele khana chaahte hain.
muslim vote hindu vote forward vote backvard vote..its polictics n all is well
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए
राजनीति में दोस्त, भाई, बहन, माँ बाप, सब के साथ खेल होते ही रहता है.सम सामयिक विषय पर पैनेपन के साथ लिखा है आपने... कहा भी तो गया है- दोस्ती जब किसी से की जाए, दुश्मनों की भी राय ली जाये.
nitish , vp singh, mulaym singh ya lalu ne kaun sa musalamanon ka bhala kiya.haan ek kam karte rahe hain ye muslim vote k liye k musalaman ko fasad se bachaaye rakhte hain.
waise dosti par achcha aur tafseelee mazmoon,
चिटठा जगत से सीधे इधर चली आई.खूब लिखा है आपने .सियासत के बहाने दोस्तों की भी खूब खबर ली है.दुनिया है ..उसके रंग हज़ार !
अह्फाज़ भाई से सहमत . मोदी से जेठ मलानी की दोस्ती खुदा खैर करे !खैर हम सब पर करे.पड़ोस में आई मेल देखने अचानक ब्लॉग याद आ गया.अब दिल्ली आ कर ही लिखना पढना हो सकेगा.
...प्रसंशनीय अभिव्यक्ति!!!!
siyasat ki baaten hain, ye to .......isme kya kah sakte hain......:)
waise achchhi prastuti...:)
siyasat ki baaten hain, ye to .......isme kya kah sakte hain......:)
waise achchhi prastuti...:)
ise kahte hain analysis. bahut hi munasib waqt mein munasib tahreer.
rajiniti kee baaten sirf siyasatdaan hi jane aisa kahne se kam nahin chalta.siyasat hamare ghar aur samaj ko bhi parbhavita karti hai.
एक बेहतरीन लेख है ,स्वार्थ मूलक मैत्री और सचे स्नेह भाव पे पनपी मैत्री के अंतर को समझाने का शुक्रिया. आपने मित्रता के कई पहलु को बेहतरीन तरीके से उजागर किया है. इंसान की फितरत है की दोस्ती और भरोसे के एवज़ में अपेछित व्यवहार चाहता है, यह अपेछा करना ही आगे जा के तकलीफ देता है. कर्म करो फल की चिंता न करने वाला ही सुखी रह सकता है.
जैनुल हक साहेब कुछ इस तरह कहें
दुश्मनी जम के करो ,पैर ख्याल इतना रहे.
जब कब्जी मिल जाएं आपस में तो शर्मिंदा न हों.
शहरोज़ साहब आज आपके ब्लॉग पर आना हुआ...सियासत में आई गन्दगी की वजह से मुझे इसमें अब कोई दिलचस्पी नहीं रही...इसलिए मैं इस से जितना दूर हो सके रहता हूँ लेकिन पानी में बिना गीले हुए बिना भी तो नहीं रहा जा सकता...आपकी पोस्ट निहायत दिलचस्प लगी...बीच बीच में दिए खूबसूरत अशआरों ने दिल मोह लिया...अब तो आपके यहाँ आना जाना होता ही रहेगा...आप हम ख्याल जो हैं...
नीरज
क्या बात है ! शेहरोज़ जी शायरी का सही प्रयोग करना तो कोई आप से सीखे !
हमें तो यह शेर पसंद आया... बात तुम्हारी नहीं बात है जमाने की।
बहुत सुंदर लिखा आप ने , लेकिन मुझे भारत की राज्नीति से कोई लगाब नही मैने इस ओर ध्यान देना ही, चर्चा करना ही छोड दिया? क्योकि इन नेताओ से ज्यादा जनता कसुवार है, जो अपने मतलब के लिये इन नेताओ के तलबे चाटती है, इन्हे वोट दे कर सर मै बिठाती है.... यानि जेसी जनता वेसे नेता.अगर जनता को देश से प्यार हो तो अपना मतलब छोड कर इन नेताओ की नीयत देखे ओर मिल कर इन से हर सबाल का जबाब मांगे.....
धन्यवाद
@राज साहब !
जनता अब सवाल करने लगी है.लेकिन जब वह ऐसा करती है तो उसे उग्रवादी राष्ट्र द्रोही और न जाने क्या क्या कहा जाने लगता है.पूरी व्यवस्था ही ऐसी कर दी जा रही है कि जनता के पास अपनी रोजी कमाने के इतर कुछ और सोचने का समय ही न रहे.करने की बात तो दूर रही.
:-)
बेहद रोचक लेख और साथ ही साथ अश`आर का मौके के मुआफ़िक़ बखूबी इस्तेमाल. बहुत खूब!
shabd जी आप की बात से सहमत हुं,
aapko pahli bar padha.yaqinan aapne achchi khinchayi kee hai in rajnetaon kee.
aapne jitne sher istemaal kiye hain maine note kar liya hai.bahut achcha laga yaha aakar.
@ shabd
totally agree
दिल्ली में भाजपा बैठक दर बैठक कर स्थिती को संभालने की कोशिश में लगी है.आगे आगे देखिये होता है क्या!!!!
बहुत ही संतुलित आलेख...राजनीति जैसे शुष्क विषय पर बीच बीच में अशआरों के प्रयोग ने इसे बेहद सरस बना दिया...
इंतज़ार ही है कि आगे की घटनाएं क्या रूख अख्तियार करती हैं..
सौ बात की एक बात कही आपने....
जब खाने की बारी आती है तो सभी एक जात के हो जाते हैं,कही कोई छूट अछूत वाली बात नहीं आती....
वैसे भांति भांति के नाम ,बस भंतियाँ फ़ैलाने के लिए ही हैं...राजनीति अपने आप में ही एक जाति है,जिसमे सभी राजनेता भाई भाई भी हैं और अवसर पर कसाई भी हैं......
क्या कलम चलाई है भाई, सचमुच मजा आ गया।
---------
क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।
nice post...
एक टिप्पणी भेजें