शुक्रवार, 30 मई 2008

ग़ज़ल के चंद शे'र

जाने तकदीर कैसी पाई है
हमने हर बार मात खाई है

उसने देखा न एक बार हमें
हम समझते थे शनासाई है

ज़िक्र दैरो हरम बहाना है
ज़िंदगी किसको रास आई है

सिर्फ़ अहले नज़र का धोका है
क्या अच्छाई है क्या बुराई है

3 comments:

Unknown ने कहा…

behtareen gazal hai.ab saaf suthre khyal milte kahan hain.
SHADAAN, RAIPUR

बेनामी ने कहा…

sundar lagi aap ki gazal ashi age badte rahe

बेनामी ने कहा…

kya baat hai sundar lagi aap ki gazal ashi age badte rahe

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