शनिवार, 18 अक्तूबर 2008

मुसलमान जज़्बाती होना छोड़ें



मायूस न हों और आक्रोशित न हों।
-हज़रत मोहम्मद स.




विभाजन के ठीक वर्ष-भर बाद भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा एक सर्वेक्षण कराया गया था। यह सन् १९४८-४९ की बात है। सात बड़े शहरों यथा मुंबई, कोलकाता, चेन्नई , अहमदाबाद, पटना, अलीगढ और लखनऊ में रहने वाले मुसलामानों से बात-चीत की गई थी। इस सर्वे में एक सहयोगी गार्डन मर्फी यूनेस्को की ओर से थे। जिन्होंने बाद में इक किताब लिखी इन दी मायन्ड्स ऑफ़ मेन , जिसमें उन्होंने लिखा :





आज का मुसलमान डरा हुआ है, अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित रहता है। सरकार उसके जान-माल की रक्षा नहीं कर पा रही है। नौकरियों और रोज़गार में उसके साथ भेद-भाव बरता जा रहा है। राजनितिक क्षेत्र में उसकी शक्ति और महत्त्व को ख़त्म किया जा रहा है।




आज इस हालत में बहुत ज्यादा तब्दीली नहीं आई है।




आज जिस असमंजस की दशा में वो जी रहा है। ऐसी हालत में कमोबेश हर कमज़ोर वर्ग रहता है। जो क़ौम शिक्षा और आर्थिक मामले में आत्म निर्भर रहती है, उसे बहुत जल्दी जज़्बात में नहीं भड़काया जा सकता। लेकिन मुसलामानों का दुर्भाग्य है कि इस भारतीय उपमहाद्वीप में वो इस क्षेत्र में अभी भी पिछडा है। अपवाद जनाब कहाँ नहीं होते हैं। यही वजह कि उसे हमेशा मज़हब के नाम पर बरगलाया जाता रहा है। भारत में धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक हुकूमत है। लेकिन ऊंचे मकाम पर बैठे लोगों की नियत में कहीं न कहीं खोट कभी-कभार देखाई दे जाता है। और इसी खोट को चालाक लोग मुद्दा बना देते हैं। और मुस्लिम युवा सड़क पर चला आता है। विरोधी शक्तियां इसी फिराक में रहती हैं कि कब उन्हें इक बहाना मिले। दरअसल इन शक्तियों का भी अपना गणित-लाभ रहता है। इन दो-ढाई दशक में ऐसी शक्तियों को खाद्य-पानी बहुत मिला है। और इधर अल्पसंख्यकों को लगातार हतोत्साहित करने उन्हें किसी न किसी बहाने परेशान करने कि घटनाएं बढ़ी हैं। और इक शायर तुफैल लखनवी कहता है:


ऐसा होता है क्या निज़ामे-दस्तूर


हर तरफ़ क़त्ल-खून दंगा है


अब तो हम्माम में सियासत के


जिसको देखो वो शख्स नंगा है











आजकल फिर कुछ सर-फिरों की बदौलत पैदाहालत का लाभ सियासत उठाना चाह रही है।ये सियासी दल जहाँ एक डराता है तो दूसरा उसका विस्तार करता है, हमदर्दी जतलाने की कोशिश करता है । और मुसलामानों में असुरक्षाबोध को बढ़ाने में कट्टरवादी और उदारवादी दोनों तरह के लोग शिरकत करते दिखलाई देते हैं। जबकि ये कथित हमदर्दियां बहुत दिनों तक उसमें ऊर्जा का संचार नहीं कर पातीं। फिलहाल फिर खौफ पैदा की जाने की कोशिश की जा रही है। ये सही है कि आप के साथ ग़लत हुआ है , आपकी राष्ट्रीयता पर सवाल किए जा रहे हैं। बावजूद इसके आप होश से काम लें , अपना जोश कायम रखें।





हुजुर-अकरम मोहम्मद स. की हदीस याद रखिये जब वो ऐसे वक्त कहा करते थे:





मायूस न हों और आक्रोशित न हों।





आप मायूस इसलिए न हों कि अल्लाह आपके साथ है। हमारा मुल्क हमारी हिफाज़त करेगा। यहाँ के कानून पर यकीन है। और अभी मुल्क सेकुलर इसलिए है कि ज़्यादातर आबादी ईमानदार है। कानून की कुर्सियों पर भी सभी बेईमान नहीं बैठे हैं। आप अपने हकों के लिए , इन्साफ के लिए अमन के साथ अपना जद्दोजिहद चलाईये। और देश के सच्चे और जनपक्षधर लोगों को साथ रखिये। आपके नेताओं ने ही आपको हमेशा लूटा है। उनके नारों के पीछे न पड़िये।





आपको हमेशा इस्लाम के नाम पर उल्लू बनाया गया है। इन नेताओं ने रोज़ी-रोटी जैसी मूलभूत समस्याओं के लिए कभी राष्ट्रिय आन्दोलन खड़ा किया ? सच्चर-सच्चर चिल्लाते रहे , कभी आपके नेताओं ने सरकारी गद्दी छोड़ी?

मुसलमानों का दुर्भाग्य रहा की उसने किसी एक का नेतृत्व कभी स्वीकार नहीं किया. अपने बीच से उसने कभी एक राष्ट्रिय क़द-काठी का नेता पैदा नहीं किया. मौलाना आजाद को छोड़कर. जिसमें सलाहियत रही उसे समय ने खारिज कर दिया. मुसलामानों के नेता शुरू से ही गैर-मुस्लिम रहे . पंडित नेहरु के जादुई शख्सियत का असर बरसों तक उन पर रहा, फिर इसकी जगह इंदिरा गाँधी ने ली. उसके बाद हेमवतीनंदन बहुगुणा , चरण सिंह , वी.पी. सिंह तथा मुलायम सिंह यादव और लालू यादव क्रमश:आते गए
लेकिन उनकी हमदर्दी उतनी ही रही जितनी हम पड़ोस के बच्चे के साथ निभाते हैं। अभी भी सभी सियासी जमात मुसलामानों को अपनी तरफ लाने में जी-जान से जुड़े हुए हैं. लेकिन सत्ता-प्राप्ति के बाद इनकी ये नाम-निहादी हमदर्दी भी काफूर हो जाती है.और इनकी टिकट पर मुस्लिम वोटों के बूते जीते मुस्लिम रहनुमा का किरदार भी अन्य देसी नेताओं से अपेक्षकृत बहुत अच्छा नहीं रहता. इनका भी कोई उसूल नहीं कायम रह पाता है , और बक़ौल मासूम गाज़ियाबादी:

जहां रहबर उसूले-रहबरी को छोड़ देता
वहीँ लुटते हुए देखे हैं अक्सर कारवाँ मैंने

प्यारे भाईओं, आप अपना उसूल न भूलें जभी कारवाँ को बचाया जा सकता है। आपने अलीगढ , मुरादाबाद, भिवंडी, मुरादाबाद जैसे अपने औद्योगिक नगरों को जलते देखा, इक तहजीब जिसमें गंगा-जमना का पानी छल-छलाता था, उसे मिस्मार होते देखा, इक सूबे में हुक्मरान की बजती बांसुरी देखी और गाँव-शहर धुंआ उगलते रहे.....आपने सब देखा ...लेकिन आप कुछ दिनों के बाद फिर अपनी जद्दोजिहद में लग गए, रोज़ी-रोटी के लिए जुट गए. पढने-लिखने और नौकरी-चाकरी के लिए दौड़-धूप करने लगे. आपने गर सब्र किया तो उसका फल भी आपको ही मिलेगा.

आप जज़्बाती नारों से गुरेज़ करें। कोई ऐसा क़दम न लें जिसका खामियाजा आपको ही भुगतना पड़े।
मुस्लिम रहनुमाओं और मुस्लिम वोट की सियासत करने वालों से भी आग्रह है कि अब बहुत हो चूका अब और इन्हें गाजर-मूली न बनाओ.इनकी तालीम और रोज़ी का इंतजाम करो अगर करना ही चाहते हो कुछ .

31 comments:

manas bharadwaj ने कहा…

lekin unki hamdardi itni hii rahi jitni hum pados ke bache ke saath nighaate hain

baat bilkul sahi hai . aapne ek jwalant muddaa chedaa hai . sirf un logon ko aasaani se behkaaya jaa saktaa hai jo ki siksha or aarthik maamlo me aatm nirbhar nahii hain . baat sahii hai ....

sir agar aap apne aage ke kisi blog me aatma nirbhartaa laane ke liye koi upaay athwaa is type ka koi sandesh de to aapka uthayaa hua mudda or jyaada jwalant hoker aag kii tarah dekhkegaa

likhte rahiye aapke aagami blog ki pratikhsa rahegii
kabhi fursat me mere blog par bhi aaiyega ..
www.manasbharadwaj.blogspot.com

aapki rai mere liye maayne rakhti hai

best of luck

Gyan Darpan ने कहा…

आपने बिल्कुल सही लिखा है इन हमदर्दी जताने वाले नेताओं की नजर सिर्फ़ और सिर्फ़ मुसलमानों में असुरक्षा की भावनाए पैदा कर उसे वोट बैंक में तब्दील करने पर है

subhash Bhadauria ने कहा…

शहरोज़जी
आप के ब्लॉग के आलेख को देखा.आप सही फ़र्मारहे हैं सियासी लोगों ने हमेंशा अवाम का इस्तेमाल किया है ख़ासकर उस तबके का जिसकी माली हालत ठीक नहीं है अशिक्षा के कारण उन्हें मज़हब और धर्म के नाम पर आसानी से उकसाया जा सकता है.
देश केराजनीतिज्ञउन्हेंआपसमेंलड़ाकर,भृष्टाचार बेरोज़गारी जैसी समस्यायों से ध्यान हटाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं.मुस्लमानों को तस्लली देने के लिए ये बात तो है कि वे मुस्लमान हैं इसलिए उनके साथ जुल्म किया जाता हैं उन्हें हक नहीं दिये जाते पर वो लोग क्या करें जो हिन्दू है फिर भी हुक्मरानों की साज़िश का शिकार हैं उनकी तादाद कुछ कम नहीं.
देहरादून के मरहूम शायर हरजीतसिंह का शेर याद आ गया -
क्या सुनायें कहानियाँ अपनी.
पेड़ अपने हैं आँधियां अपनी.

आप के लिए तो यही दुआ करते हैं-
अल्लाह करे ज़ोरे कलम और ज्यादा.आमीन.

Anil Pusadkar ने कहा…

शहरोज़ भाई बहुत सही लिखा आपने। मेरा बचपन मुस्लिम मुहल्ले मे गुज़रा,मौदहापारा में। सारे दोस्त मुस्लिम ही थे।सब के घर मे मुझे उतना ही प्यार किया जाता था है और रहेगा,हालांकी अब वो मुहल्ला छुट गया है। आपने जो कहा इस बात को मैं उनसे बांटता था,कुछ समझते थे,कुछ नही।वैसे उस मुहल्ले से जुडा एक दिल्चस्प वाक्या है,कभी फ़ुर्सत से लिखूंगा।वहां रज्जु रहता है,सत्तार उसका नाम है।मैं उसे सत्तार से सत्तू कहने की ज़िद करता था,जब वो नही माना तो मैने उसे रज्जु उसका घर का नाम था,से राजेंद्र कहना शुरु किया,सालों बीत गये मैंउसे आज भी राजेंद्र ही कहता हूं,और घर पर आवाज़ लगाने पर अम्मा आज तक यही कहती आ रही है ,नही है बेटा राजेंद्र कहीं गया है। खैर छोडिये पुराने किस्से को। और हां आपके भाई ही हम्।इस नाते मेरा ब्लोग उतना ही आपका है जितना मेरा। आपको इजाज़त लेने की कोई ज़रुरत नही है,ये आपका हक़ है। आप जब चाहें जैसा चाहे करिये।

drdhabhai ने कहा…

शहरोज जी जब तक हम इस गंग जामुनी संस्कृति के साथ अपने को नहीं ढालेंगे तब तक यही चलने वाला है.मुसलमान इस देश और संस्कृति का बनके रहे तो ऐसी कोई समस्या नहीं आयेगी....पर प्रेरणा स्त्रोत कहीं दूर हो तो हम पूरे मन से हिंदुस्तानी कैसे बन पायेंगे...हमें धार्मिक आस्थाओं और राष्ट्र को अलग करके देखना ही पङेगा.

राज भाटिय़ा ने कहा…

एक ऎसा सच जिसे बहुत कम लोग समझते है, ओर जो यह सच बोलते है, उन्हे यह नेता चुप करा देते है.
शहरोज़ भाई मेरे दोस्तो मे मुस्लिम भी है, कई मुस्लिम दोस्त तो बात भी गालियो से करते है, लेकिन उन गालियो मै भी अपना पन छिपा होता है, इन नेताओ ने ही फ़र्क डाल दिया है, वेसे तो आज भी आम आदमी हिन्दु मुस्लिम मै कोई फ़र्क नही समझता, ओर कोई फ़र है भी नही,हमारे रास्ते अलग अलग है लेकिन मंजिल एक ही है.
धन्यवाद, अमीन आप की बात सब की समझ मै आये, वो किसी भी धर्म का क्यो ना हो, हम सब एक है

Unknown ने कहा…

शहरोज जी आपके ब्लॉग को पढा, बेशक पने सही लिखा है। देश के सियासतदानों ने आजादी से आजतक मुसलमानों केवल वोटों के रूप में ही गिनती की है...अगर ये थोड़े भी ईमानदार होते तो देश का मुसलमान आज गुरबत और अशिक्षा में जी नहीं रहा होता। हैरत होती है कि 1857 के गदर और बाकी तारीखों में मुसलमानों ने अंगरेजी हूकूमत के खिलाफ जंग लड़ी...लेकिन आज क्या बात हो गई कि इन्हें शक की निगाहों से देखा जा रहा है.... अब बहुत हो गया बंद करें देश को जलाने वाली राजनीति वरना महाभारत जैसे हालार हो जाएगें कि राज करने के लिए कोई नहीं बचेगा।

Unknown ने कहा…

कुछ दिन पहले मैंने अपने ब्लाग 'सबका मालिक एक है' पर एक पोस्ट डाली थी, जिसमें मैंने यही बात कही थी कि दूसरों के बह्काबे में मत आओ.

"प्रेम ईश्वर का धर्म है.
नफरत शैतान का धर्म है.
यह तुम्हें तय करना है,
कि तुम किस धर्म के हो?

आतंकवादियों को तुम्हारे धर्म को बदनाम मत करने दो.
नेताओं को तुम्हारे धर्म से खिलबाड़ मत करने दो.
आतंकवादी किस के दुश्मन हैं?, पहचानो.
कभी कोई नेता मरा है बम धमाको में?
जो मरे वह आम आदमी थे, तुम्हारे जैसे.
वह तुम भी हो सकते थे.
वह हिंदू भी थे, मुसलमान भी.
सिख भी और ईसाई भी.

आतंकवादी आम आदमी के दुश्मन हैं.
तुम यह क्यों नहीं समझते?
वह लड़ाना चाहते हैं हिंदू और मुसलमानों को.
यही नेता भी चाहते हैं.
पिछले साठ-सत्तर सालों से वह यही कर रहे हैं.
हर बम धमाके के बाद वह तिलमिला जाते हैं.
क्योंकि उनका मकसद पूरा नहीं होता.
कितने आम आदमी मर जाते हैं.
पर हिंदू-मुस्लिम झगड़ा नहीं होता.
मैं नमन करता हूँ आम आदमी को,
वह मर जाता है पर इन का मकसद पूरा नहीं होने देता.

मुझे यही तकलीफ हमेशा होती है.
कि तुम अपने दुश्मनों को अभी भी नहीं पहचान रहे.
आतंकवादी तुम्हारे दुश्मन हैं.
आतंकवादी और नेता एक सिक्के के दो पहलू हैं.
आम आदमी का दोस्त केवल आम आदमी है.
जो हिंदू है, मुसलमान भी,
सिख भी है और ईसाई भी.
यह सीधी सी बात तुम्हारी समझ में क्यों नहीं आती?"

makrand ने कहा…

बस जज्बाती होना छोड़ दे
बहुत सही कहा आपने

रश्मि प्रभा... ने कहा…

sahi kaha,bas apne usulon ko naa bhulen.....

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

आप से सहमत हूँ।

अजित वडनेरकर ने कहा…

सही सही

RAJ SINH ने कहा…

kitana sach aur kitnee belag saaf baat aur kitna gahara vishleshan !
aap ke likhe ka intezar rahega .

aapka dard jayaj hai.......jahan se rahbar alag hote hain vaheen karvan naheen toot rahe.vaheen pr karvan laye ja rahe hain lutane ko !

MUJHE RASHTA DIKHA KE MERE KARVAAN KO LOOTA.........

समीर यादव ने कहा…

मुसलमानों का दुर्भाग्य रहा की उसने किसी एक का नेतृत्व कभी स्वीकार नहीं किया. अपने बीच से उसने कभी एक राष्ट्रिय क़द-काठी का नेता पैदा नहीं किया. मौलाना आजाद को छोड़कर. जिसमें सलाहियत रही उसे समय ने खारिज कर दिया. मुसलामानों के नेता शुरू से ही गैर-मुस्लिम रहे .

मुस्लिम रहनुमाओं और मुस्लिम वोट की सियासत करने वालों से भी आग्रह है कि अब बहुत हो चूका अब और इन्हें गाजर-मूली न बनाओ.इनकी तालीम और रोज़ी का इंतजाम करो अगर करना ही चाहते हो कुछ .

शहरोज जी, इतनी साफ-सुथरी सोच के साथ कभी भी दुविधा की स्थिति नहीं बनती. आप तो इसका मशाल जलायें रखें..... हम आपके संग हैं.

ज़ाकिर हुसैन ने कहा…

शहरोज़ भाई! आपने एकदम सच्चाई बयान की है. यूँ भी वर्तमान में कोई भी नेता सबसे पहले सिर्फ और सिर्फ नेता होता है, बाद में हिन्दू या मुसलमान. उसका धर्म ही (अ)धर्म को इस हद तक फैलाना होता है कि लोग धर्म के नाम पर आपस में लड़ सकें.
और ये भी ज़रूरी नहीं कि लोग धर्म के नाम पर ही लडें,, अगर मुस्लिम देश हो तो वहां सिया-सुन्नी जैसी बातों पर भी लोगों को लड़ाया जा सकता है. और अगर हिन्दुस्तान में सिर्फ हिन्दू ही रह जाएँ तो ऐसा नहीं कि शांति छा जायेगी. तब उन्हें राम-कृष्ण या स्वर्ण-दलित के नाम पर लडाया जायेगा.
अब ये तो हमें यानी आम जनता को ही सोचना है कि इन नेताओं के (अ)धर्म के लिए कब तक लड़तें रहेंगे!
सुरेश चन्द्र गुप्ता जी की कविता में व्यक्त विचारों से पूरी तरह सहमत हूँ.

बेनामी ने कहा…

आपका लेख कबीले गौर है. देश के मुसलमान अपने को हमेशा अलग रख कर देखते हैं. पर सत्य यह है की आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के सभी लोगों की समस्याएं वही हैं, चाहे वह किसी भी धर्म के हों, हिंदू या मुसलमान. नेता किसी के नही हैं. आपकी यह बात मुझे सही लगी की आज़ादी के बाद मुसलमानों का आज तक कोई अच्छा मुसलमान नेता नही उभरा. उनके रहनुमां वही लोग रहे जिन्हें वोट चाहिए था.

ललितमोहन त्रिवेदी ने कहा…

शिक्षा के बिना कोई भी कौम तरक्की नही कर सकती,केवल मज़हबी शिक्षा किसी भी धर्म की हो ,दिमाग के बंद दरवाज़े नही खोल पाती है ! आक्रोश और भय हिंसा को जन्म देते हैं , उच्च शिक्षा ही जीवन के अन्य रस्ते दिखाती है और सही सोच को मज़बूत करती है !आपका लेख सामायिक और तरक्की पसंद है !

गुफरान सिद्दीकी ने कहा…

अस्सलाम अलैकुम,
शहरोज़ भाई मै भी सभी की तरह आपकी बैटन से इत्तेफाक रखता हूँ बेशक अपने जो मौजू उठाया है वो सही है लेकिन मसला ये है की घर बैठे या इन्टरनेट के ज़रिये कितने लोगों तक अपनी बात बहुचायी जा सकती है हकीकत में जिनको रहनुमाई की ज़रूरत हो सकता है की उन तक आपकी आवाज़ न पहुंचे लेकिन अगर यही बातें हम उनके बीच जा कर बोलें तो शायद हम बहोत कुछ बदल सकते हैं तो क्यों न ऍम इसकी शुरुआत आज से ही अपने आस पास से करना शुरू करें.........,क्या कहते हैं................?

आपका हमवतन भाई ..गुफरान(ghufran.j@gmail.com)

talib د عا ؤ ں کا طا لب ने कहा…

aapki kai baaton se ittefaq hai.

lekin ye taalim sirf musalmaanon ke liye hi kyon.

waise aap achcha likhte hain.

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

बहुत ही अच्छा आलेख है। चोट खाई संवेदनाओं को राहत ज़रूर मिलेगी इससे।
मेरे विचार से जो भी हमला है वह सिर्फ़ इस्लाम या मुस्लिमों पर नहीं है। भारत की बात लें तो तथाकथित हिन्दुत्ववादी ताकतों का हमला सिर्फ़ मुस्लिम या ईसाई लोगों पर नहीं है। उनका निशाना है जम्हूरियत और मक़सद है फ़ासिज़्म। मुसलमान, ईसाई, दलित, और सारे ही प्रगतिकामी लोग हमेशा से ही उनके निशाने पर रहे हैं।अगर कहीं इनका कब्ज़ा देश पर हो गया तो इनके हमदर्दों को भी अपनी औक़ात पत चल जायेगी क्योंकि इनका हर हथियार मेहनतकश जनता के ख़िलाफ़ ही उठना तय है और 95% वही तो हैं। इनका मु्काबला भी सारे प्रगतिकामी लोगों को इकट्ठा करके ही हो सकता है। इन फ़ासिस्टों को सबसे अधिक डर जनता की एकता से लगता है और यही वजह है कि वे सबसे पहले इसे तोड़ने की कोशिश करते हैं।इस्लामी मुखौटे वाले इनके भाई-बन्द भी वही काम करते हैं।

Suneel R. Karmele ने कहा…

शहरोज़ जी, जब तक मतलब परस्‍त नेता और लोग हैं, तब तक कौमी एकता पूरे देश में आत्‍मसात कर ली जाए, यह संभव नहीं है। फि‍र चाहे वे नेता और लोग कि‍सी भी कौम के हों। उनका मकसद ही रहता है कि‍ मुद्दों को हमेशा गर्म रखा जाए, ताकि‍ लोग भाईचारा का पाठ पढ़ न सके। फि‍र भी हम उम्‍मीद करते हैं कि‍ वे दि‍न आयेंगे और जरूर आयेंगे कि‍ हम कौम की बात न करके एक भारतीय होने की बात करेंगे। आमीन.....

Prem ने कहा…

shahroz mai apke blog ko dekh raha hu...kabile tareef hai, jin muddo par charcha hoti hai, wo waqt ki zarurat hain. meri koshish hogi ki mai zald hi poems ke zariye apni baat ko is blog par sajha kar sakun

संजय बेंगाणी ने कहा…

मेरा मानना है, दोष देना छोड़ दें. इस देश ने जितना हिन्दुओं को दिया है उतना या ज्यादा ही मुसलमानो को दिया है. जितना दुखी हिन्दु है मुसलमान उससे ज्यादा दुखी नहीं. अतः शिक्षा पर ध्यान दे, यहाँ सब्के लिए मौके है. धर्मान्धता सबसे बड़ी बाधा है, दुसरे इसमें क्या करेंगे.

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

dharmon ko baat rakha hai na koi aatankwadi hai.....

dil se puchain hum zara dil se dil tak ki azadi hai...

na koi bhed-bhav na koi danga fasad........

dekho to sirf ik insaan hai na dekho to barbadi hai akshay-man

उम्दा सोच ने कहा…

भाई संजय बेंगाणी से सहमत आज तक मुसलमानों के लिए जितना कुछ किया गया है वो हिन्दुओ से कई दर्जे ज्यादा है !


पर धर्मान्धता और भेडचाल के चलते राजनेताओं ने खूब गुमराह किया और फ़ायदा लिया है !अब समाज शिक्षित हो रहा है और वर्ग के शिक्षित ही आगे आ कर इस विडम्बना से निजाद दिला सकते है !


समय की मांग है मसले को हिन्दू मुसलमान से ऊपर उठ कर जागरूक भारतीय की नज़र से देखे !

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

shahroz sahab ,assalam alaikum ,bahut achchha likhte hain ap, ap ke qalam men wo taqat hai jo kuchh sochne par majboor kar deti hai ,aaj aise secular lekhon ki zaroorat bhi hai ,jinhen ye lekh ektarfa laga unse mafi chahti hoon lekin mujhe aisa nahin laga ,main dr. subhash bhadauriya ki baat se sahmat hoon ki ye sthiti kisi aik qaum ya mazhab ki nahin har us insan ki hai jo imandar hai ,jo insaniyat ko baqi cheezon par tarjeeh deta hai,jo dange fasad se gurez karta hai jo bhaichare men yaqeen rakhta hai .apki naseehat har us insan ke liye hai jo apni jahalat ,ya kam aqli ki bina par netaon ke changul men phans jata hai aur wo ghalti kar baithta hai jiska khamiyaza bhi usi ko bhugatna padta hai.bahar hal is mazmoon ke liye mubarak baad qubool karen.

बेनामी ने कहा…

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