बस्स धुन में चढ़ते जाना
पहाड़ों और पेड़ों पर
इससे बिल्कुल अंजान कि
वहाँ काँटे और ज़हरीले जीव भी हैं
बचपन की आदतें कहीं छूटती भी हैं ।
हम सब कुछ भला-भला सा समझने के
आदीजो ठैरे
जानती तो थी कि वह कई अस्तबलों में जाता है
अब उबकाई आती है कहते कि
वह बिल्कुल

पिता की तरह था
हर संकट में साथ देने को तत्पर
उसकी डांट भी कभी बुरी नहीं लगी
सुलतान पर उसकी दृष्टि तो थी
पर मैंने हमेशा इसे वात्सल्य समझा
उस शाम
ज़रूरी निर्देश समझाते-समझाते
उसके हाथ पीठ पर रेंगे
तो उसकी कुटिल मुस्कान की हिंसा
मेरी आंखों से काफ़ी दूर थी कि
अचानक
उसकी पकड़ मज़बूत हो गई
सुलतान को मुझसे ज़बरदस्ती झपटने के
प्रतिकार में मैं बुक्का मार दहाड़ी
वह आज का खड्गसिंह है माँ
देर तक मुझे समझाता रहा और
नए-नए प्रलोभनों की साजिशें बुनता रहा
माँ , मुझे लोग सहनशील कहते हैं
उन्हें पता है इसमें छुपी यातनाओं का
मदद को बढ़ा अब हर हाथ सर्प-सा लहराता है
अपनत्व से निहारती निगाहें चिंगारियां उगलती हैं
हे प्रभु! मुझे क्षमा करना
मैं ने सभी संपर्क ख़त्म कर लिए हैं
पर माँ , हर कोई खड्गसिंह तो नहीं होता !
मुझे गर्भ में छुपा लो माँ
बहुत-बहुत डर लगता है
(रेखांकन चार साला साहबजादे
आयेश लबीब का
जो अक्सर वह कंप्यूटर पर बैठ कर किया करते हैं )