रविवार, 3 अगस्त 2008

उर्दू लेखकों की धर्मान्धता

यास यगाना पर इस्लाम-विरोध का इल्ज़ाम
शर्म उनको मगर नहीं आती

तहजीब और गंगा-जमनी गहवारे का गवाह शहर लखनऊ से बहुत बुरी ख़बर मिली है.अपने समय के मशहूर उर्दू शायर यास यगाना पर आयोजित होने वाले परिसंवाद को कथित कट्टरवादी उर्दू के लेखकों के दबाव के कारण स्थगित कर दिया गया . ये हादिसा जून का है . साहित्य अकादमी ये आयोजित कर रही थी.विरोधियों ने ये कहकर आयोजन न होने दिया कि यगाना इसलाम-विरोधी थे.और लखनऊ में किसी तरह का प्रोग्राम नहीं होने दिया जायेगा.
इलाही माजरा क्या है?
ये अदब के भी लोग हैं या नहीं जिन्होंने यगाना जैसे शायर की मुखालिफत की।

इस घटना ने वही पुरानी बहस को जिंदा कर दिया कि क्या ज़बान किसी धर्म-मज़हब की बपोती होती है.
तो क्या प्रेमचंद,सरशार,फिराक पर ये लखनऊ वाले naam-nihadi उर्दू premi -मुस्लिम कभी अपने यहाँ कोई आयोजन नहीं होने देंगे.
क्या अहमक़ानापन है.
फिर बात ये समझ में नहीं आती कि साहित्य अकादमी उनसे डर क्यों गयी.
अगर अदब यानी साहित्य धर्म या मज़हब के मातहत होता तो क्या मीरजैसा शायर ये कहने की जुर्रत करता:

मीर के दीन-ओ-मज़हब को पूछते क्या हो ,उन से
क़शका खींचा, दैर में बैठा कब का तर्क इसलाम किया
तो ग़ालिब कहते हैं:
हमको मालूम है जन्नत की हकीक़त लेकिन
दिल के बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है

शओक़ लखनवी ने बहुत तीखे तेवर में शायरी की है।और भी कई शायर-लेखक हुए.क्या ग़ालिब और मीर या यगाना के समय के मुसलमान से आज के ये लखनवी मुस्लिम जिन्होंने विरोध किया ज्यादा ईमान के पक्के हैं? क्या ईमान महज़ किसी के विरोध और समर्थन पर टिका होता है?क्या पाकिस्तान की सरकार गैर-इस्लामी हो गयी ?
मुश्फिक ख्वाजा के संपादन में वहां कुल्लियात-यगाना प्रकाशित हो चुका है।

यूँ ये ख़बर भी और ज़रूरी ख़बर की तरह गुम हो गई थी.अभी उर्दू के लेखक नामी अंसारी का इक ख़त उर्दू के इक अख़बार में छपा तो खाकसार को जानकारी मिली।उनके हम आभारी हैं.इस घटना की जितनी निंदा की जाए कम है.इक शे'र को थोडा सा रद्द-ओ-बदल कर कहने का मन करता है:

अदब का खून होता है
तो मेरी रूह रोती है
अदब के साथ बेअदबी
बहुत तकलीफ़ होती है

(साहित्, आत्मा, सम्मानहीनता,असम्मान)

14 comments:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

एक ही हिन्दूस्तानी जुबान को साम्प्रदायिक राजनीति ने हिन्दी और उर्दू में विभाजित किया है। यह तो जनता ही है जो दोनों को हिन्दुस्तानी बनाए हुए है।

अभय तिवारी ने कहा…

आप की बात और भाषा दोनों पसन्द आईं..

Anil Pusadkar ने कहा…

Shahroz bhaijaan aap keh to sahi rahe magar afsos is baat ka hai rajneeti ne desh ke do hathon ko ek dusre se ladaa diye,dono aankhe ek dusre ko phuti aankh nahi suhati hai,kare to karen.khiar jo bhi ho, bahut din baad aapko padhne ka mila,badhai aapko ek imaandar vichaar aur sawaal ke liye

आशीष कुमार 'अंशु' ने कहा…

sahee faramaa rahe hai Bhai jaan.

बेनामी ने कहा…

Aapne Himmat Ke Saath Sach Bolaa Hai, Vo Bhi Khoobsurati Se. Sharm Ki Baat Hai Ki Haamari So-called Sarkaare Aur Akaadamiyaan In Fasist Taakato Ke Saamne Jhuk Jaati Hain.

Satish Saxena ने कहा…

शहरोज भाई !
आपकी बहादुरी के लिए आपका इस्तकबाल करता हूँ ! आपने कट्टर धार्मिक असहिष्णुता, जो हमें आपस में लड़ा दे, उसका विरोध करने की हिम्मत की है ! मुझे चिंता यह है कि कुछ लोग आप जैसे सच्चे मुसलमान को भी काफिर या काफिरों का दोस्त न समझ लें ! आपके ही कहे हुए कुछ शब्द मुझे याद आ रहे हैं !

"तंग-जाहिद नज़र ने मुझे काफिर समझा
और काफिर ये समझता है मुसलमाँ हूँ मैं"
ये हम जैसे तमाम लोगों की पीडा है.....

यह अफ़सोस जनक है कि आप जैसे लोगों की इस पीड़ा को कोई नही समझना चाहता , बड़े बड़े विद्वान् यहाँ ब्लाग जगत में ही कार्य कर रहे हैं, मगर कोई यहाँ आकर साथ नही खडा होता ! मैं अपने धर्म को बहुत प्यार करता हूँ मगर मैं अपने मुस्लिम भाइयों व मुस्लिम धर्म को भी उतना ही आदर कर, उन्हें यह अहसास दिलाना चाहता हूँ कि अधिकतर देशवासी उन्हें व उनके धर्म का उतना ही आदर करते हैं जितना अपने का ! और मुझे पूरा विश्वास है कि अधिकतर मुस्लिम भी यही सोचते हैं ! फिर भी प्रतिक्रियावादी इन मीठे दरियाओं को सुखाने का, कोई हथकंडा खाली नही जाने देते ! मुझे नही लगता कि आप जैसे लोगों से अधिक कोई और धार्मिक सद्भाव रखता होगा ! मेरा व्यक्तिगत विचार है कि धर्म के दुरुपयोग करने बालों को बेनकाब करना ही चाहिए ! मगर इस नाज़ुक विषय पर सिर्फ़ उन्ही को आगे आना चाहिए जिसको इसकी समझ हो !

हमें अपने अपने धर्म को सम्मान देना है, और देना चाहिए ! धर्म सबसे ऊपर है, और अपने परिवार में संस्कार और सभ्यता धर्म की ही देन हैं ! मगर धर्म के तथाकथित अपमान के नाम पर उसका दुरुपयोग नहीं होने देना चाहिए ! दुःख तब होता है जब एक बेहद अच्छे और निश्छल व्यक्ति के ऊपर देश तोड़ने, विद्वेष फैलाने, और उसके अपने ही धर्म के अपमान का आरोप उसके ऊपर मढ़ दिया जाता है ! आप चलते रहें , मेरे जैसे बहुत से लोग आपको देख रहे हैं और आपका साथ भी देंगे !
यगाना के बारे में कुछ और तफसील दें, उन्हें पढ़ कर अच्छा लगेगा !

Smart Indian ने कहा…

बहुत ही अच्छी लगी आपकी लेखनी. आज ऐसे ही ओजपूर्ण लेखकों की ज़रुरत है देश को.
ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे और प्यार और सहनशक्ति भी!

ज़ाकिर हुसैन ने कहा…

शहरोज़ भाई !!!!!!!!!
आपने सही कहा है कि ज़बान किसी धर्म से नहीं जुडी होती. वो सिर्फ अभिव्यक्ति का माध्यम होती है
लेकिन हमारी बदकिस्मती है कि भारत में उर्दू को मुसलामानों कि भाषा बना दिया गया है. यहाँ तक भी चलो खैर...... लेकिन जब इसे कट्टरवाद से जोड़ दिया जाये तो दुःख होता है. जबकि सच ये है कि उर्दू को लोकप्रिय बनाने में उर्दू अदब का हाथ रहा है न कि धर्म का. और अदब न तो किसी मजहब की बपौती होता है और न किसी व्यक्ति की. ये पूरे समाज की बपौती होता है. वाकई उर्दू के लिए ये शर्मनाक है की चंद लोगों ने इसे अपनी जागीर मान लिया है और अब इस कोशिश में हैं की इस ज़बान में वही लिखा जाये जो वो चाहें.
आपने उनकी इस सोच को करारा जवाब देने की हिम्मत दिखाई इस के लिए मैं आपको दाद देने के साथ-साथ इस राह मैं आपके हमराह भी रहूँगा.
आप बेफिक्र होकर ऐसे लोगों को सच का आइना दिखाते रहें

Unknown ने कहा…

sir, adab ke sath be adbi koi nai bat nahi hai han yeh zarur hai ki urdu ismen kuch zyada hi pisti hai.ye hindi ke sath islamic hai to musalmano men gair islamic.aapke post ko padh manoharshyam joshi ji ka lekh yad ho aaya jismen unhone "khuda hafis" ke jgah allah hafis" bolne ki prapriti ke piche ki sampradaik rajniti ka ullekh kiya tha.

श्रद्धा जैन ने कहा…

Hairat hai jaha log aaj ke zamane main khud ko padha likha hone ka dawa karte hain
wo is tarah ki bachkani bataon par bhi apna kimti samay khraab kar sakte hain
gyaan agar kisi achhot se bhi mile to lena chahiye
wo guru ho jata hai
aur yaha log dharam par ro rahe hain

Sharoj ji bhaut dileri chhaiye hai is tarah ki baat ko likhne ke liye

achha lagta hai jab apne doston main aap aise achhe aur sachhe logon ko paati hoon

Hats off to you

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

बड़े साहस के साथ ,बेबाकी के साथ लिखा आपने मुस्लिम रचनाकारों के मामले में अक्सर यह कम ही देखने को मिलता है / इस हिम्मत को सलाम !

बेनामी ने कहा…

Nice to visit in yoour site, but i can't read anything because i don't know with your language.
Greeting from Jakarta, Indonesia

http://aqiegaul.blogdetik.com

डॉ .अनुराग ने कहा…

वाजिब बात को सलीके से सामने रखा .....दिल को छू गई आपकी बात.....

Amit K Sagar ने कहा…

डुबो दिया...उम्दा. बार-बार आयेंगे...आप लिखते रहें...

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