शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

इन्द्रियों पर नियंत्रण सब से बड़ा जिहाद है.


संतान की तरह सेवकों की सेवा करो.उन्हें वही खिलाओ जो तुम खाते हो.
बदन से पसीना गिरने से पूर्व ही मजदूरों को उनकी मजदूरी दे दो.
अनाथ और औरतों का हक मारना सब से बड़ा गुनाह है.
तुम में सब से बेहतर वह है जो अपनी पत्नी के साथ सब से अच्छा व्यवहार करे.
पानी कम से कम खर्च करो.ख्वाह वुजू ही क्यों न कर रहे हो और दरिया के पास क्यों न बैठे हो.


ऐसी अनगिनत कई बातें हैं जो अत्यंत महत्वपूर्ण और संग्रहणीय  हैं जिसे इस्लाम के संस्थापक कहे जाने वाले  पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद [स.] ने कहीं है.आज दरअसल उन्हीं का जन्मोत्सव ईद  मिलादुन नबी  मनाया जा रहा है.भारत में इसकी शुरुआत [यानी जिस तरह आज यह मनाया जाता है]  कोलकाता से मानी जाती है.इस मौके पर सब से पहला जुलुस १९११ के आस-पास इसी शहर के मुसलामानों ने निकाला था.दरअसल हनफी सुन्नी सम्प्रदाय के दो मुख्य वैचारिक केद्र हैं.देवबंद स्कूल और बरेली स्कूल.देवबंद स्कूल का मान्न्ना है की जब हुजुर ने ही अपना या अपने किसी स्नेही जनों का जनोत्सव नहीं मनाया तो फिर हम लोग उनका क्यों मनाएं.और फिर इस्लामी कलेंडर के मुताबिक़ जो उनकी पैदाइश की तारीख़  है वही दुर्भाग्य से उनकी देहावसान की भी है.इस तरह ज़ाहिर है की बरेली स्कूल इसे जोर-शोर के साथ मनाता है.अब तो बाज़ाप्ता सरकारी अवकाश भी रहता है.खैर ये एक अलग मुद्दा है.बात हम प्यारे नबी की कर रहे थे.


कुछ बातें उनके बारे में [ईद मिलाद-उन-नबी पर]

अरब के रेगिस्तानी इलाके के अनाम से शहर मक्का में अब्दुल मुताल्लिब के सब से छोटे बेटे अब्दुल्लाह के यहाँ २ अप्रेल, सन ५७१ को सूरज की पहली किरण के साथ पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद का जन्म हुआ.जन्म से पूर्व ही उनके पिता की मौत हो गयी थी. कुछ ही दिनों में माँ की ममता से भी वंचित हो गए.इस अनाथ बच्चे को सहारा देने आये दादा भी दो साल बाद चल बसे.सारा दुःख-दर्द सिर्फ आठ साल के दरम्यान बच्चे की परवरिश चाचा अबू तालिब ने की.घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी.वह चरवाहा बन गए. रोज़ी-रोटी की जुगत में १२ साल का बच्चा चाचा के साथ दूर देश भी गया.यानी घर से दूर.अपने साथ बूढी और मजबूर औरतों का सामान भी ले लिया ताकि उनके बिकने पर उन मजबूरों की कुछ आमदनी हो सके.आप मजबूरों और कमजोरों का हर पल ध्यान रखते.कई ऐसे गुण थे बालपन से ही कि  उन्हें अमीन [अमानतदार]  और सादिक़ [सच्चा ] की लोक उपाधि बचपन में ही मिल गयी.मशहूर अमरीकी विज्ञानिक हार्ट मायकिल एच हार्ट ने कहा है, वह इतिहास के अकेले आदमी हैं जो धार्मिक और सांसरिक दोनों स्तरों पर काफी कामयाब रहे. [दी १०० न्यू यार्क १९७८]

वह अपना काम खुद ही कर लिया करते थे.राज्य-प्रमुख होने के बाद भी आपके स्वभाव और रहन-सहन में किंचित अंतर न आया.आपने घर से बाहर तक का दायित्व बखूबी  निभाया.कई पत्नियों [सिर्फ एक को छोड़कर बाक़ी आठ पत्नियों की उम्र आप से डेढ़ गुना थी और जब कुर'आन की सूरत ने चार बीबियों की शर्त  आयद कर दी तो उसके बाद आपकी निकाह में चार से ज्यादा पत्नी नहीं रहीं..और ये भी बताता  चलूँ   कि नए शोध्य के अनुसार उनकी आखरी पत्नी आयेशा की उम्र सत्रह वर्ष थी जब आप ब्याहकर लाये. ]और बच्चों की ज़िम्मेदारी के बावजूद आपका घरेलु, सामाजिक और अध्यात्मिक जीवन एक आदर्श है.नबूवत [इस्लाम की घोषणा] से पहले भी लड़ाई-झगड़े और वाद-विवाद के निपटारे के लिए लोग आपके पास आते थे.आपका  फ़ैसला  पतथर  की लकीर माना जाता.नबूवत के बाद भी वही नज़रिया रहा. एक दफा दो लोग आपके पास वाजिब निर्णय के लिए आये.आपने सच का साथ दिया.फ़ैसला यहूदी के पक्ष में गया.जबकि दूसरा व्यक्ति मुसलमान था.

एक बार एक शख्स आपके यहाँ आया.आपने मेहमाननवाजी में कोई कसर न छोड़ी.सुबह जब आप उसके कमरे में गए, तो उसे नदारद पाया.चारों तरफ गन्दगी फैली थी.आप जब नापाक बिस्तर धो रहे थे कि वह लौटा.आपने उसकी खैरियत पूछी.रात अचानक उसकी तैबियत खराब हो जाने की सूचना नहीं देने पर आपने नाराज़गी जतलाई.अथिति अत्यंत लज्जित हुआ.उसने कहा , मैं तो आपका क़त्ल करने के इरादे से आया था.तैबियत अचानक बिगड़ जाने के कारण सुबह-सुबह ही यहाँ से निकल पड़ा.याद आया कि तलवार तो यहीं छुट गयी उसे ही लेने अभी आया हूँ.उस व्यक्ति ने तुरंत ही क्षमा-याचना की.और शिष्य बन गया.ऐसा कई किस्से हैं जो  इंसानियत को रौशन करते हैं.सत्ता-परिवर्तन के बावजूद आपने इसाई और यहूदी जनता के साथ न-इंसाफी नहीं होने दी.दीं के मामले में कोई ज़बरदस्ती नहीं [कुर'आन]. आपने जितनी भी लड़ाईयां लड़ीं सभी रक्षात्मक थीं.आपने कहा, किसी गोरे का किसी काले पर, किसी बड़े का किसी छोटे पर और किसी अमीर का किसी  ग़रीब पर कोई प्रभुत्व नहीं. नौकर-मालिक के कथित अंतर को अपनी बहन जैनब की शादी कतिपय गुलाम ज़ैद बिन हारिस के साथ  कर मिटाया.प्यासे कुत्ते को पानी पिलाने वाली चरित्रहीन औरत को जन्नती तो भूख-प्यास से एक बिल्ली को मारने वाली नेक-नमाज़ी औरत को जहन्नमी बताया.आर्थिक गैर-बराबरी को पाटने के लिए आपने ज़कात और फ़ितरा संपत्ति पर निश्चित अंश दान  हर साल करना  हर व्यक्ति पर वाजिब बतलाया.अगर किसी के पास कुछ नहीं है तो हुजुर ने कहा की एक मुस्कान ही सही लोगों के बीच बांटो.निदा फ़ाज़ली जैसे शायर ने जभी कहा एक रोते हुए बच्चे को हंसाया जाय!सदी के महाचिन्तक विवेकानंद ने लिखा है, किसी धर्म ने पूरी तरह से समान अधिकार की बात की है, तो वह सिर्फ इस्लाम है.[पत्र संग्रह १७५].

पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद ने जब रूढ़ीवाद, अंधविश्वास और अराजकता का विरोध करना शुरू किया तो आपको परेशान किया जाने लगा. आपके क़त्ल की कई असफल कोशिशें हुईं.लेकिन आपने कभी बदले  का विचार नहीं किया.सत्य, समानता और मानवाधिकार की शिक्षा एक ऐसे व्यक्ति ने दी, जो उम्मी [अनपढ़] था, और जो सिर्फ २२हज़ार, ३३० दिन और ६ घंटे इस नश्वर संसार में रहा.


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13 comments:

Satish Saxena ने कहा…

हज़रत मोहम्मद के बारे में यह खूबसूरत जानकारी देने के लिए आपका आभार शहरोज मियां ! ऐसे लेखों की बहुत ज़रुरत है यहाँ , आशा है भविष्य में भी आप इस्लाम की खासियतों से अवगत कराते रहेंगे !

मिलाद उन नबी के अवसर पर आपको मुबारकबाद !

Amitraghat ने कहा…

" पूरा लेख शानदार है आपको भी मिलाद उन नबी की मुबारकबाद ...."
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com

राज भाटिय़ा ने कहा…

जनाब आप को ईद मिलादुन नबी की बहुत बहुत मुबारक वाद, ओर होली की बधाई.
आप ने पैगंम्बर हजरत मोहम्मद जी के बारे बहुत सुंदर बताया, वेसे यह सब मेरे पिता जी ने बचपन मै हमे बहुत सुंदर ओर बेहरतीन ढंग से समझाया था, मेरे पिता जी ने कुरान, ओर गुरुग्रंथ ओर गीता को बहुत ध्यान पुर्वक पढा था.

कडुवासच ने कहा…

"मिलाद उन नबी" की मुबारकबाद, बहुत बहुत शुभकामनाएं !!!

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

किस्‍सा बेहतरीन है।
जीभ रूपी इन्द्रिय पर नियंत्रण गर हो जाए
तो सैकड़ों फसाद तो यूं ही कम हो जाएंगे।

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

शहरोज़ साहब ,
बहुत अच्छा लेख ,ये जानकारियां लोगों तक पहुंचा कर आप एक सवाब का काम कर रहे हैं ,
शुरु की चंद सतरें ही उन के किरदार पर भरपूर रोशनी डालती हैं और अगर हमें एक ज़र्रा भी मयस्सर हो तो
हम इन्सान बन जाएं
मिल जाए ख़ाके पाए रसूले अनाम गर
क्या चीज़ तख़्त ओ ताज ,ज़मीं और ज़र कहां
इस नेक काम के लिए शुक्रिया

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

होली की बहुत-बहुत शुभकामनायें.

shikha varshney ने कहा…

ऐसे लेखों की बहुत जरुरत है आज..वाकई इन्द्रियों पर लगाम लगे तो सारी मुश्किलें हल हो जाये.बहुत आभार आपका.

श्रद्धा जैन ने कहा…

Achcha lekh
kafi jaankari mili

sunil gajjani ने कहा…

shahraz saab,
aabahr aap ka ki aap dwara hume accha aalekh padhe ko mila,
gyan vardhak hai, shukariya

Spiritual World Live ने कहा…

shahroz sahab aapne bahut hi maaqool waqt par is mazmoon ko post kar bina mubaalga achcha kam kiya..

talib د عا ؤ ں کا طا لب ने कहा…

hazarat aapne dekh liya kitne logon ne aapko id-milaad ki mubaarak di aur is mazmoon par apni raay di!!!!!!!!!

behad maloomaati post!

Ashish (Ashu) ने कहा…

अहा, अति सुन्दर

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