यह हँसते हैं तो पौ फूटती है...गर अश्क उभर आए इन पलकों पर तो शिराएँ शिथिल हो जाती हैं , यकबयक ! इनकी खूब याद आ रही है, इन दिनों हमसे दूर हैं.छुट्टियों में नानी के घर.पिछले वर्ष लिखी कुछ कविता-नुमा पंक्तियाँ उनके तांबांक कल के लिए समर्पित उनके ही नाम!
हमारे पास कुछ भी नहीं है
चंद औराक़ गर्दिशे-दौराँ के
चंद नसीहतें जो नस्ल दर नस्ल हम तक पहुंचीं
ऐसा विश्वास जहाँ श्रद्धा के अतिरिक्त
सारे सवाल अनुत्तरित और प्रतिबंधित
हैं
मैं कांपता था , लड़खडाने लगते थे क़दम
पसीने लगते थे छूटने
तुम मत डरना
कभी कुत्ते के भौंकने और बिल्ली के म्याओं म्याओं से
शिनाख्त रखना नहीं
न वजूद के पीछे
भागना
रैपर बन जाना
किसी भी साबुन की टिकिया
का चमकदार और भड़क दार ,
टिकिया के बारे में न सवाल करना, न करने देना ;
वे एक सी होती हैं
सभी
हाँ !रैपर का नाम ही तुम्हारा होगा
यह मान बढायेगा तुम्हारा
अनुभव की पोटली से निकले यह चंद
सिक्के बेईमानी , झूठ और मक्कारी
कल तुम्हारे मुद्रा-अस्त्र होंगे
सहेजकर रखना इस वसीयत
को
मुझे याद मत
करना
किरदार और गुफ्तार रफ़्तार की
रखना रेत के टीले मत बनाना ।
बाबा की पाती
हमारे पास कुछ भी नहीं है
चंद औराक़ गर्दिशे-दौराँ के
चंद नसीहतें जो नस्ल दर नस्ल हम तक पहुंचीं
ऐसा विश्वास जहाँ श्रद्धा के अतिरिक्त
सारे सवाल अनुत्तरित और प्रतिबंधित
हैं
मैं कांपता था , लड़खडाने लगते थे क़दम
पसीने लगते थे छूटने
तुम मत डरना
कभी कुत्ते के भौंकने और बिल्ली के म्याओं म्याओं से
शिनाख्त रखना नहीं
न वजूद के पीछे
भागना
रैपर बन जाना
किसी भी साबुन की टिकिया
का चमकदार और भड़क दार ,
टिकिया के बारे में न सवाल करना, न करने देना ;
वे एक सी होती हैं
सभी
हाँ !रैपर का नाम ही तुम्हारा होगा
यह मान बढायेगा तुम्हारा
अनुभव की पोटली से निकले यह चंद
सिक्के बेईमानी , झूठ और मक्कारी
कल तुम्हारे मुद्रा-अस्त्र होंगे
सहेजकर रखना इस वसीयत
को
मुझे याद मत
करना
किरदार और गुफ्तार रफ़्तार की
रखना रेत के टीले मत बनाना ।
21 comments:
ये छुट्टियां कमख्त हर साल आती हैं।
"मुझे याद मत करना" - बिलकुल नामुमकिन ,असंभव ! सकारात्मकता दीजिए ।
सप्रेम,
शहरोज भाई
अपना एक शेर अर्ज करता हूं गौर फ़रमाएं :-
"सिर पे बांध के कफ़न, वो घर से निकल आया था
तूफ़ान जब ठहरे, तो लोगों ने उसे 'खुदा' माना था।"
आपकी रचना में तनिक मायुसी नजर आई इसलिये "शेर" अर्ज किया हूं!!!
ek dhaardaar rachanaa. bahut kuchh sochane par mazboor karne valee. kavita hi to takat hai. shabdon ke maadhyam se jeevan ke vyaparo kee padtaal karti hai vah.
शहरोज़ भाई बच्चे बहुत प्यारे हैं. इनको मेरे किसी ब्लॉग पोस्ट मैं लगाने की इजाज़त मिलेगी क्या. बच्चों की हंसी ओहरी ज़िन्दगी नहीं जीती इसी लिए मुझे इनकी हंसी से प्यार है.
kavita se naummeedee nazar aati hai.aur haan ummeed rakhen..kavita achchi hai.
AYESH AMASH to pyare hain hi!!
bahut pyar !
nazam apne content me durust to hai lekin aflatoob sb se ittefaq !
bachche aapke bahut pyaare ji allah buri nazar se bachaaye aamin.
kavita ko aaj ki arthvyavasstha me dekhna chahiye ki aisi naubat kyon.......
kuch lines to rah rah kar vichar karne ko mazboor karti hain.sharoj ji achchi kavita k liye badhayi len.
kya kahana lekin ap itne nirasha waali bat kyon karte hain.aflatoon sb nayimsab se sahmat.
khuda ki basti bahut badi hai..inayat un par phir bhi nahin hai..aisa hargiz na sochen..
aapke nanhe munne ko pyar!!!
जब अपने कलेजे के टुकड़े दूर होते हैं तो ऐसी ही मायूसी घेर लेती है....बेहद संवेदनशील रचना.
आएश और आमेश को ढेर सारा प्यार...
शहरोज भाई,
ईमानदार लोग इन सचाइयों से रोज गुजरते हैं। लेकिन कभी ये नहीं कहते मुझे याद मत करना। वैसे भी इस कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता। याद रखने वाले तो फिर भी याद रखते ही हैं।
हाँ, रैपर बनना कभी न स्वीकार हुआ न कभी होगा। जीवन भले ही नंगे पैर क्यों न चले।
आपकी भावनाओं को प्रकट करती एक बेहतरीन रचना.
मायूस शब्
ढलने के बाद,
ढेरों आशाएं
समेटे हुए,
नई सहर
इंतज़ार में हैं.
अपने जोश को
समेट कर रखिए,
इस्तक़बाल के लिए
कुछ खुशिया
बेकरार सी हैं.
बहुत प्यारे बच्चे हैं ..और बेहद संवेदनशील कविता .
पढ़के अच्छा लगा,
कैसे इतने दिनों तक रहा दूर मैं
क्यूँ नहीं पहले पहुँचा मैं इस ब्लॉग तक
सोचता हूँ तो बस सोचता रह गया…
ख़ैर जो भी हो,
दिल से दुआ है यही
आप अच्छे से अच्छा सुख़न लाएँ पर
दिल के ख़ुशियों से गाढ़े त'अल्लुक़ बनें
और हम कह सकें-
"हमको अच्छा लगा…"
संवेदनशील रचना
aapke bachhe bahut pyaare hai.... khushnaseeb hai aap jo bhagwaan ne aisi nemat bakhshi hai .....
aap ki kavita ne nishabd kar diya .....
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