रविवार, 13 दिसंबर 2009

विवादित है ‘नारी’!

वाह भाई! वाह!!! अब ब्लागर भी महिला-पुरुष, हिंदू - मुसलमान, अवर्ण-सवर्ण हो गया। औरत होने की सज़ा लिखने के बाद कइयों ने मुझसे कहा कि मुझे यह सब उनके हवाले छोड़ देना चाहिए। यानी महिला ब्लागरों के। आप अपने समाज के बारे में क्यों नहीं लिखते। मुस्लिम ब्लागर हैं ही कितने!!! किसी ने कहा कि नारी नामक ब्लाग विवादास्पद है।
इस विभाजन का मैं शुरू से ही मुख़ालिफ़ रहा हूं। हमारा हिंदी साहित्य समाज इस रोग से पहले ही ग्रसित था लेकिन चिट्ठा जगत को इससे गुरेज़ करना चाहिए। लेखक सिर्फ़ लेखक होता है। और कोई इस आग्रह-पूर्वाग्रह से किसी चीज़ को देखता है या लेखन करता है तो ऐसा लेखन अमरत्व हासिल कभी नहीं करेगा। गर कोई औरत के बारे में लिखता है या कोई दलित के मुतल्लिक़ सवाल करता है। यहां गलत क्या है। अंग्रेज़ी के चावसर और हिंदी के संभवत दूबेजी टोटा रटंत करा गए कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। और हम सब इसी समाज में तो रहते हैं। चाहे महिता हों ,पुरुष हों, अवर्ण या सवर्ण हों।
लेकिन भौतिक्तावादी उपभोगतावाद के पड़ते हथौड़े से दर्पण में आई किरचों ने सारा गुड़ गोबर कर दिया है। चीन्ह- पहचान ,भाई- भतीजावाद और वर्ग-जाति की सड़ांध पत्र -पत्रिकाओं से लेकर अब हिंदी ब्लागों तक स्पष्ट महसूस की जा रही है। ज्यादा से ज्यादा क्लिक करवाने की होड़ मची है। शोहरत का नशा भी भोगवाद की ही एक शक्ल है। ब्लाग अपनी बात रखने के लिए बहुत ही अच्छा मंच है। हम लोंगों को इसका सदुपयोग करना चाहिए। वैचारिक मतभेद हो सकते हैं । लेकिन इधर जिस तरह की पोस्ट या कमेंट पढ़ने को मिल जाते हैं, ऐसी अमर्यादित बोली भाषा से हमें बचने की ज़रूरत है।

ज़िक्र साहित्य और पत्रकारिता का व्हाया ब्लाग

भोगवाद की बारिश ने हम जैसे कलम घिस्सुओं को भी पानी-पानी कर दिया है। भौतिक सुख-सुविधा के सामने आदर्श ,देशहित, नैतिक्ता सब कुछ नतमस्तक हो रहे हैं । रातों-रात सब कुछ भोग लेने की प्रवृति ने जोर पकड़ा है । उत्कृष्ट साहित्य, पटल से पूरी तरह ग़ायब है । प्रसिद्धि की भेड़चाल ने कला, साहित्य के नाम पर कुछ भी परोस देने की कुपरंपरा को जन्म दिया है। एक श्लोक याद आयाः

घटं मिंद्यात, पट छिंद्यात
कुर्यात रासम रोदनम्
येनकेन प्राकरेणः पुरुषो भवेत्।

यानी किसी को शोहरत पानी हो तो उसे चाहिए कि किसी का घड़ा फोड़े, किसी का कपड़े फाड़े या गधे की तरह रेकना शुरू कर दे । तब लोग उसे जान ही जाएंगे। साथियो, ऐसा भी हो रहा है, यह कहने में कोई संकोच नहीं। प्रायोजित मानसम्मान की फसल भी ख़ूब लहलहा रही है। एयरकंडीशंड में बैठकर कालाहांडी पर कविताएं की जाती हैं। पत्रपत्रिकाओं से लेकर ब्लागरों ने भी अलग-अलग दुकान सजा रखी है। देश-भर में जिसके अपने-अपने एजेंट तैयार हैं। लेकिन ऐसा हरगिज़ नहीं कि अच्छी रचनाएं लिखी ही नहीं जा रही हैं। दरअसल उनका यथेष्ठ प्रकाशन-प्रसारण नहीं हो पाता है। यदि कहीं हो गया तो उसकी चर्चा नहीं की जाती। कइयों के अंदर बहुत कुछ उबलता है पर परिस्थिति उसे बाहर आने से रोक देती है। गांव, क़स्बों और महानगरों में रोटी-रोज़ी के लिए जूझते ऐसे असंख्य क़लमकारों की पीड़ा को माधव कौशिक बयान करते हैं :

सपनों की दर्द आह पर कुछ भी नहीं लिखा
हमने बदन की चाह पर कुछ भी नहीं लिखा

जब सरफ़रोशी की तमन्ना लिए लोग सड़कों पर निकल आते थे। उस दौर में अकबर इलाहाबादी ने कहा थाः

है नहीं शमशीर तो अपने हाथों क्या हुआ
हम क़लम से ही करेंगे क़ातिलों के सर क़लम

हम कर तो यही रहे हैं लेकिन अपने ही भाइयों का सर क़लम कर रहे हैं। जो ग़लत है। अख़बार तो एक ब्रांड बन चुका है। इसका उपयोग हर भले बुरे कामों के लिए किया जाता है। नेता जैसा शब्द कभी आदर सूचक हुआ करता था लेकिन आज इसकी इतनी तौहीन-फ़ज़ीहत हो चुकी है कि उबकाई आती है। ऐसा ही कुछ-कुछ अब लेखक या पत्रकार जैसे शब्द को सुनकर होता है। प्रबुद्ध कहा जाने वाला तबक़ा नाम-भर का प्राणी रह गया है। जैसी कभी रही होगी वैसी सोच और व्यवहार में एकरूपता ढूंढते रह जाएंगे। सीख व विचार बहुत है। बात वही पेप्सी पीते हुए गांधी का स्मरण करना। बुद्धिजीवि लफ़्फ़ाज़ी करना तो खूब जानता है लेकिन कहां??? बस एक दूसरे की टांग खींचने में या फ़ला- फ़लां को नाम सम्मान दिलाने में अपनी ज़्यादातर ऊर्जा खपा देता है। यदि शब्दों का सार्थक उपयोग करे तो क्या कमाल की बात हो। प्रेमचंद ने कहा हैः साहित्य राजनीति के आगे आगे चलने वाली मशाल है। आम आदमी के दुख दर्द के प्रति इनका नज़रिया नित्य पार्टी बदलने वाले नेताओं से कम नहीं। बात यहीं तक महदूद नहीं है।
अब तो दलित लेखक, महिला ब्लागर, मुस्लिम कवि !!!!
ऐसा अगल्ला पुछल्ला क्या आपको उद्वेलित नहीं करता???



36 comments:

बेनामी ने कहा…

बिलकुल उद्वेलित हैं , आप ही की तरह ,इस गिरावट से । लिखने वालों में जो सकारात्मक होना चाहिए उसे आपने बढ़ावा दिया है ।

बेनामी ने कहा…

नारी नाम का ब्लॉग विवाद सपद हैं क्यूँ ?? "महिला ब्लॉगर" नारी ब्लॉग की देन नहीं हैं हां नारी ब्लॉग का जनम इस बात के विरोध मे ही हुआ था । ब्लॉगर को " महिला और पुरूष " मे बांटा गया । लोग भूल जाते हैं या जो नये हैं वो जानते ही हैं । एक समय था जब ब्लॉग पर महिला ब्लॉगर के प्रति एक दोयम का नज़रिया था । जो ब्लॉगर कविता लिखती थी और महिला थी उनके लिये कहा जाता था की इनको कमेन्ट महिला होने की वजेह से ही मिलते हैं । जो कविता कहानी नहीं लिखती थी उनके लिये कहा जाता था ये विवाद करती हैं । महिला ब्लॉगर को इस लिये पुरूस्कार दिया जाता था क्युकी वो महिला हैं सो उसको आगे बढ़ाना चाहिये ।

नारी ब्लॉग की सब प्रविष्टियाँ पढे । छांट छंट कर हमने वो कमेन्ट दिये हैं जिनमे जेंडर बायस हैं या वो आलेख दिये हैं जिनमे समाज की रुढी वादी सोच हैं की नारी को ये करना चाहिये ये नहीं ।

नारी ब्लॉग पर नारी सशक्तिकर्ण को अहमियत हैं और उस आज़ादी की बात हैं जो हमे हमारे संविधान ने दी हैं । उस समानता की बात हैं जो हमारा अधिकार हैं । नारी ब्लॉग पर उन नारियों की प्रशंसा हैं जिन्होंने " घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की हैं " और अगर अपनी बात को कहना विवाद हैं तो हर ब्लॉग पर विवाद ही हो रहा हैं ।

और नारी की बात अगर नारी पर हो रही हैं और नारी कर रही हैं तो इसमे बुरा क्या हैं ।

شہروز ने कहा…

rachanaji i am totaly agree with you! plz read my post carefully then comment.plz plz.i never accept this cllasification eg: women, muslim or dalit!writers or bloggers.

बेनामी ने कहा…

shehroj

i am with your post only my comment is for those people who say naari blog vivadspad haen .

shama ने कहा…

Mai khud is bhed bhav kaa virodh karti hun..lekhan ,lekhan hota hai...aurton ke apne alag pransh hai, ye baat sach hai, lekin uske alag blog ho ye mai zarooree nahi samajhtee...lekin ye ek wyaktigat vichar hai!

http://shamasansmaran.blogspot.com

http://kavitasbyshama.blogspot.com

http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

बेनामी ने कहा…

shama
har jagah naari pusuh ko samantaa dilvaa deejiyae
mahila blogger jaese shbad hatvaa deejiyae

Unknown ने कहा…

रचना जी ,सच कड़वा है मगर ये सच है ,नारी ब्लॉग से जुड़े लोग जब नहीं तब सार्वजनिक तौर पर एक दूसरे के खिलाफ भड़ास निकालते रहते हैं |इससे इस ब्लॉग का मूल उद्देश्य कहीं खो जाता है ,शहरोज जी का कहना बिलकुल सही है |

Saleem Khan ने कहा…

नारी विवादास्पद क्यूँ है क्यूंकि वह नारीत्व की परिभाषा भूल चुकी है और वह पुरुष बनाना चाहती है!!!

सलीम खान

बेनामी ने कहा…

भड़ास निकालते

har blog ki apni line aur length hotee haen aur us sae judna sae pehlae ham ko yae dakh hi lena chahiyae

aur rahee baat bahadaas ki to sab ko adhikaar haen apni baat kehnae kaa

ek dusraey ko padh kar hi ham jaan paatey haen ki hamarey maksad sae kuan judaa haen aur kitna judaa haen

बेनामी ने कहा…

नारीत्व की परिभाषा
पुरुष बनाना चाहती है!!!
dono baatey bahut hi bekar ki haen kyuki ham naari hi ban kar khush haen kyuki hamey to purush mae aesa koi gun hi nahin dikhtaa jiskae liyae ham ishwar ne jo hamey banayaa haen wo badlae

haan usii ishwar ne hamey ek dimmag bhi diyaa haen jo apni soch bnaaney kae kaam aataa hae

Unknown ने कहा…

बात कहने और भड़ास निकालने का अंतर बहुत साफ़ होता है ,सार्वजनिक तौर पर भी भड़ास निकालने का अधिकार किसी को नहीं ,हाँ बात कही जा सकती है , नारी ब्लॉग से जुड़े कुछ एक लोगों द्वारा एक दूसरे के खिलाफ कहीं गयी बातों को सार्वजनिक तौर पर न ही पढ़ा जा सकता है न ही ऐसी बातें करने वालों को प्रश्रय दिया जाना चाहिए ,वैसे जानने का ये तरीका सही नहीं है ,एक पाठक के तौर पर राय रहेगी आमंत्रित महिलाओं को ही सदस्यबनायें

Saleem Khan ने कहा…

दिमाग ईश्वर ने इसलिए दिया है क्यूंकि इंसान, इन्सानियत के क़ानून (ईश्वर के बनाये) को समझ सके, या पुरुष, पुरुषत्व के क़ानून को समझ सके और नारी, नारीत्व के क़ानून को!!! न कि पश्चिम के अन्धानुकरण !!!???

सलीम खान

बेनामी ने कहा…

एक पाठक के तौर पर राय रहेगी आमंत्रित महिलाओं को ही सदस्यबनायें
is baat sae purn sehmati haen par abhi tak mujhe naari blogpar to kisi bhi sadsyaa ka koi bhi aalekh aesa nahin lagaa jisko padhaa naa jaa sakey

agar aap ki nazar mae kahin koi aesaa aalekh aaya haen to mujeh suchit karey aalekh hataya bhi ja saktaa haen

aur naari blog kae sadsyaa yaa bhutpurv sadsya kahin bhi kuch likhnae kae liyae swatantr haen chaahey wo naari blog kae khillaaf hi kyun naa ho

mera maksad saaf haen mujhe gender bais sae cheedh haen aur mae samantaa ki baat kartee hun wo samntaa jo samvidhaan mae haen

बेनामी ने कहा…

पश्चिम के अन्धानुकरण

yae kewal stri aur purush mat bhedh mae hi kyun deekhtaa haen

har jagah ho rahaa haen hindu muslim ko alag kar naa bhi पश्चिम के अन्धानुकरण hi haen

vandana gupta ने कहा…

main to sirf ek baat janti hun ki nari kabhi vivadit nhi rahi usko banaya jata hai vivadit wo bhi apni soch ke karan...........aapka lekh bahut hi sarthak hai ..........insaan ko in muddon se upar uthna hoga agar aaj bhi unhi par atke huye hain to kaise kah sakte hain ki humne pragati ki?kya yahi pragati ka swaroop hai?
yahan blogs par har insaan sirf blogger hai stri ya purush nhi , hindu ya muslim nhi kyunki hum jab koi rachna padhte hain to ye nhi dekhte pahle ki wo kaun hai balki ye dekhte hain ki usmein kaha kya gaya hai...........kya jo kaha gaya wo hamein khinchne mein safal huaa ya nhi.........hamare vicharon ko usne jhanjhoda ya nhi uske baad hum comment karte hain aur kai baar to ye bhi dekhe bina ki likhne wala kaun hai koi achchi cheese padhi aur apne vichar vyakt kiye aur chale jate hain bina jane ki likhne wal kaun hai ..........ye isliye kah rahi hun kai baar khud mere blog par jo comment aaye wo aise aaye jaise mein male hun chahe uske baad jab bhi un logo ke comment aaye unmein wo baat nhi thi.isliye blogs par ye sab hona uchit nhi hai jise jo kehna ho kah sakta hai apne blog par bagair kisi ki shanti bhang kiye..........hamari to yahi soch hai.

सुनीता शानू ने कहा…

सही कहा आपने लेकिन विभाजन कहाँ नही हैं? आप बताईये ट्रेन बस मैट्रो हर जगह विकलांग व वृध्द के साथ नारी की सीट आरक्षित क्यों होती है? हर क्षेत्र मे पुरूषों की होड़ जब नारी कर सकती हैं तो आरक्षण में असमानता क्यों?

Mohammed Umar Kairanvi ने कहा…

भाई शहरोज़ सच पूछो तो पढ न सका, कमेंटस में रचना आंटी का ब्‍यान भी न पढ सका, कल फुरसत होगी, तब पढूंगा भी कुछ कहूंगा भी, आज ब्‍लागवाणी चटका न. 5 देदिया,

बेनामी ने कहा…

jab koi rachna aunty kehtaa haen to badii khushi hotee haen is liyae sabnsey pahlae to Mohammed Umar Kairanvi ko aashish kyuki ab aap ne aunty kehaa haen to apnae sae badaa manaa haen

badaa banaa diyaa haen to yaad rakhiyae ki mera sammaan aap kaa samaan haen aur is liyae ab yae aap ki zimmedari haen ki mare upar kahin bhi koi apshabd ho yaa teeka tippani ho to aap wahaan aapti darj karayegae

yahi haen bhartiyae sabhytaa aur aap bhartiyae haen yae yaad rakhae

bhagwaan sae prarthna haen ki aap ko hamesha itna hi vinarm rakhae

PD ने कहा…

@ रचना(आपके पहले कमेंट पर) - ये बात तो मैं अभी भी कहूंगा कि अधिकांश महिलाओं को कमेंट्स नारी होने के कारण ही मिलता है.. मगर मनोवैज्ञानिक आधार पर देखने पर मैं इसे कुछ भी अजीब नहीं मानता हूं..

Mithilesh dubey ने कहा…

उब गया हुँ साला ये नारी ब्लोग के बकवास व फालतु लेख को देख-देख कर । हर समय वही घिसी पिटि बाते होती हैं इनके पास लिखने को । नारी ब्लोग से विनम्र निवेदन है कि आप लोगो नें जिसके लिए नारी ब्लोग की स्थापना की है उसपर ज्यादा कार्य करें तो भला होगा नारी समाज का । आपके जितने भी लेंख मैंने पढे है वह या तो पुरुष विरोधी होता है या तो भारततीय संस्कृति विरोधी व पश्चिम का पिछ लग्गु । एक बात समझ नही आती कि क्या हमारे यहाँ महिलाओं का विकास पाश्चात के तर्ज पर ही हो सकता है ? महिला सशक्तिकरण बिल्कुल जरुरी है लेकिन वो नारी ब्लोग के तर्ज पर हो ये जरा ना गवार सा लगता है । नारी ब्लोग पर जितने लोग लिखती हैं सभी लोग भ्रमित हैं और कुछ नहीं । आप लोग कहती हैं कि महिलायें घूंघट क्यो करे , पायल क्यों पहने , यहाँ आपको नारी अपमान दिखता है । और जब आप में से ही किसी महिलां को नंगी नचाया जाता है वो भी साबुन और तेल बेचने के लिए आप भी देखती होंगी टीवी पर , तब आप लोग कुछ नहीं बोलती , और वहीं कोई मर्द छेड़खानी कर देता है तो आप लोगो को लगता है कि यहाँ नारी अपमान हुआ है , वाह रे नारी ।

बेनामी ने कहा…

क्या बचवा मिथिलेश तुमका हम निमन्त्रण दिये हैं का की जो बकवास हम क्लिख्तेय हैं तुम उसको बांचो , हम को तो बिलुलाए ही नहीं याद पड़ता कभी तुमका कोई भी लिंक भेजा गया हो । वो का हैं ना जो सब कूदी कूदी के नारी ब्लॉग का बांचत हैं वही सब उसको विवादित बतावत हैं । कहे अपना समय नष्ट करते हो । उही जाओ जहाँ पाँव मे पायल हो माथे पर बिंदिया और तुमहूँ ताली बजो क्युकी



आप की नज़र मे नारी का काम केवल घुघट ओढ़ कर पायल पहन कर आप का मनोरंजन करना ही हैं बाकी वो क्या करती हैं आप को ना तो अच्छा लगता हैं ना समझ आता हैं अभी आप की उम्र कुछ कच्ची हैं सो आप को उब भी बड़ी जल्दी ही होती हैं । अपने घर मे रहे दुसरो के घरो मे { घर= ब्लॉग} पर ना झांके उब नहीं होगी और अगर ब्लॉग सार्वजनिक मंच हैं तो जितना आप का उतना मेरा भी

Mithilesh dubey ने कहा…

बात तो आपकी बिल्कुल सही है कि आपने हमको निमंत्रण नहीं दिया है कि हम आपको बाचे , लेकिन क्या करें जब कभी कुछ गलत दिखता है तो नजर तो वहाँ महुच ही जाती है क्या करें दिल है कि मानता नहीं । आप हमें बुलाये या ना बुलाये हम तो आ ही जाते है वो क्या है न कि लोग उसे ही देखते है जो कि बढिया हो या घटिया, आप हमका समझ ही गयीं होंगी क्यों । रही बात आँचल और घुघंट की तो वही तो यही आपकी ना समझ है कि आप एकराको बस मनोरंजन मानती है और हम इसको संस्कृति से देखते है । और झाँके कैसे ना जब सार्वजनिक है देखना तो बनता ही हैं ना आंटी । और आपको बता चलूँ की ये तनीक भी ना समझिये कि मेरी नजर में नारी का काम केवल मनोरंजन करना ही है ।

Mohammed Umar Kairanvi ने कहा…

@ रचना आंटी जी यह आप मुझे बता रही है या खुद याद कर रही है, आपने एक बार ब्‍लागर्स से आपत्ति दरज करवाई थी अपने ब्‍लाग की उस पोस्‍ट पर दूसरे न. पर कमेंटस देखिए कौन था, फिर उसपे 37 ब्‍लागरस ने 'ब‍हन की चो' गाली खाई, उन 37 में अकेला मैं ही नहीं जिसने अपना हिसाब चुकता किया है, भारतीय होना मुझे हमेशा याद रहता है, इस पर मुझे गर्व है, लेकिन आपकी दूसरी दुआ भगवान मुझे विनम्र रखे ठीक नहीं है, क्‍यूँकि अगर मैं वह होता तो दूसरे महान 36 ब्‍लागरस जैसा होता, क्‍या उन जैसा होना उचित था? मुझे किसी जैसा नहीं होना, आसपास पडोस की माँऐं अपने बच्‍चों को मेरे जैसा होने की दुआऐं देती हैं, कोई विश्‍वास करे या न करे हमने देखा है सुना है और हम झूठ नहीं बोलते, वही बात लाखों के लिए हम बोलते नहीं करोडों कोई हमे देता नहीं,
मैं तो आपको अवधिया जी पोस्‍ट ''मेरा अवधिया चाचा से कोई सम्‍बन्‍ध नहीं'' पर आंटी लिखना चाहता था वहां आपके कमेंटस पर मैंने लिखा था 'रचना आंटी से सहमत' परन्‍तु जैसे एकलव्‍य का अंगूठा काट लिया जाता है वहां मेरा 'आंटी' शब्‍द को काट लिया गया,
मेरा पुराना रिकार्ड देखते हुए कभी याद किजिए किसी पोस्‍ट के लिए, भतीजा हाजिर होजाएगा

@शहरोज साहब जानना चाहेंगे आपत्तियों की कहानी तो गूगल में नीचे की पक्ति सर्च करें-ः
मेरे विरुद्ध आपत्ति दर्ज कराने वाले 37 लोगों को यहाँ सादर आमंत्रण है .

बेनामी ने कहा…

और झाँके कैसे ना जब सार्वजनिक है देखना तो बनता ही हैं ना आंटी ।

bilkul blog hae hi saarvjanik dairii
us par jo bhi likha jaata haen kisi naa kisi kaa vyaktigat anubav hota haen jisko wo saarvjanik kartaa haen

tumko to beta ji padh padh kar hi uub honae lagii aur unki mahilaa / naari ko socho jo sadiyon sae yae sab seh rahee haen


vaese kairanvi sahib ki aunty hui to tum dadi kehao to behtar hoga sanskriti kaa takjaa haen


aur aunty shabd paashchaty sanskriti ki daen haen tum kaese bol gaye mausi keho , bua kaho sab chalaegaa bitva

Mohammed Umar Kairanvi ने कहा…

रचना खाला कैसा रहेगा? हमारे यहां तो माँ की बहन या उनकी उम्र की महिला को खाला कहते हैं,

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

शहरोज भई का आलेख पढ़ कर बड़ा अच्छा लगा , लेकिन उस पर टिपण्णी करने वाले विषय को छोड़ कर पता नहीं कहाँ कहाँ भटक जाते हैं?
ब्लोग्स अपनी व्यक्तिगत संपत्ति समझाने लगे है लोग, आप अपने ब्लॉग को संपत्ति समझिये लेकिन दूसरे ब्लोग्स पर ऐसी टिपण्णी मत कीजिये जो किसी को अपमानित महसूस करने पर मजबूर कर दे. आप जो भी ब्लोग्गेर्स हैं, पढ़े लिखे और एक संवेदनशील व्यक्ति हैं. अपने विचारों से और प्रयासों से कुछ ऐसा करने का प्रयास कीजिये कि समाज में एक स्वस्थ वातावरण का विकास हो न कि विवाद का.

शहरोज भई का आलेख जो सन्देश दे रहा है, उसको ही ग्रहण कर लें हम सब तो कुछ भला हो सकता है. जैसे समाज में रहने वाले सभी मनुष्य हैं और वैसे ही सभी ब्लोग्गेर्स मनुष्य ही हैं. दर्द चाहे पुरुष को हो या नारी को वह दर्द ही होता है और अगर संवेदनशील उसको महसूस करता है तो उसे इसमें नारीत्व या पुरुषत्व का पृथक अहसास नहीं होता है.
अगर ब्लॉगर टिप्पणियों के लिए नहीं लिखता है. न ही उसको अपने अनुसरण करने वालों का शौक होता है. ये लेखन है और अपनी अपनी सोच है, सब स्वतन्त्र है लेकिन आक्षेप हर हाल में बुरा है. विषय बहुत सारे हैं जिनसे समाज और परिवार को संवारा जा सकता है , समाज में व्याप्त बुराइयों से मुक्ति के और कदम बढ़ाये जा सकते हैं.
@सलीम खान जी,

जिस दिन नारी नारीत्व कि परिभाषा भूल जायेगी , उस दिन ये सृष्टि भी समाप्त हो जायेगी. आप किस नारी कि बात कर रहे हैं, वह जो आपकी माँ है, बहन है. अगर नहीं तो क्या वे नारी जाती में शामिल नहीं हैं. नारी पुरुष नहीं बनाना चाहती , वह पुरुषों को बनाती है, वह जननी है. तोहमत लगने से पहले ये सोच लीजिये कि आप कह क्या रहे हैं?

रहा सवाल नारी ब्लॉग का तो भोक्ता ही ऐसी बातें कर सकता है, "भोगा हुआ यथार्थ " ऐसा नहीं है कि पुरुष नहीं समझता है , सदियों से नारी समस्यायों पर पुरुष लेखकों ने लिखा तब कभी कोई विवाद हुआ ही नहीं. नारी के लिखने पर भड़ास जैसे शब्दों का प्रयोग शर्मनाक ही है.

बेनामी ने कहा…

ab rachna keh rahey haen yaa khala yae decide kar lae kyuki khala yaani mausi kehna haen to naam to naa lae sakegae


aap jo jaahey kahen yae aap kaa nirnay hoga

PD ने कहा…

रचना जी, जैसा आप मिथिलेश जी को कह रही हैं कि जब पसंद नहीं तो यहां क्यों आये क्योंकि आपने तो कभी उन्हें अपना लिंक भेजकर बुलाया नहीं था.. उसी तरह आपको भी कई ब्लौग वाले नहीं बुलाते हैं.. फिर भी वहां आप कुद्दी मार ही आती हैं.. इसे क्या समझा जाये?

यहां तो फिर से व्यक्तिगत आक्षेप शुरू हो गया.. शायद हिंदी ब्लौगरों के पास व्यक्तिगत तू-तू मैं-मैं के शिवा कोई काम नहीं है.. इसे इस पोस्ट पर मेरा अंतिम कमेंट माना जाये..

डिस्क्लेमर - इसे मिथिलेश जी का समर्थन ना माना जाये, इसे रचना जी के कमेंट से असहमती मानी जाये..

PD ने कहा…

"यहां" से मेरा मतलब नारी ब्लौग से था..

बेनामी ने कहा…

pd
i did not reply to your first comment and i am not replying to your second comment either why ? i leave for your better judgement to understand .
read your own second comment and the answer lies there in

Spiritual World Live ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Spiritual World Live ने कहा…

मैं एक आम पाठक हूँ.और कमेन्ट तो बहुधा कम ही karta हूँ.जब किया तो पोस्ट को ठीक ढंग से पढ़ कर और मुमकिन हुआ तो सारे कमेंट्स को देखने के बाद, कुछ कहने की जुरत karta हूँ.
यहाँ लोग खाहमखाह रचना जी के पीछे पड़े हुए हैं.ऐसा क्यों?/ उन्हों ने क्या गुनाह कर डाला.शहरोज़ साहब ने जिन मुद्दे को उठाया है, वो सवाल मौजूं है.ब्लॉगर को मुस्लिम-हिन्दू,पुरुष-नारी या दलित खाने में न देखा जाए.लेखक तो लेखक होता है.जो दर्दमंद दिल रखता है, विवेकी होता है, संवेदनशील होता है.रेखा जी से सहमत हूँ.और साथियों से गुजारिश है की नाहक बहस-मुबाहिसे में न उलझ कर मूल सवाल से मुठभेड़ करें.और स्वस्थ माहौल बनाएं.

شہروز ने कहा…

@pd यहां तो फिर से व्यक्तिगत आक्षेप शुरू हो गया.. शायद हिंदी ब्लौगरों के पास व्यक्तिगत तू-तू मैं-मैं के शिवा कोई काम नहीं है..

@vandnama sirf ek baat janti hun ki nari kabhi vivadit nhi rahi usko banaya jata hai vivadit wo bhi apni soch ke karan...........aapka lekh bahut hi sarthak hai ..........insaan ko in muddon se upar uthna hoga agar aaj bhi unhi par atke huye hain to kaise kah sakte hain ki humne pragati ki?kya yahi pragati ka swaroop hai?
@kairanvi भारतीय होना मुझे हमेशा याद रहता है, इस पर मुझे गर्व है,

@ रेखा श्रीवास्तव
आलेख पढ़ कर बड़ा अच्छा लगा , लेकिन उस पर टिपण्णी करने वाले विषय को छोड़ कर पता नहीं कहाँ कहाँ भटक जाते हैं?

@zeya यहाँ लोग खाहमखाह रचना जी के पीछे पड़े हुए हैं.ऐसा क्यों?/ उन्हों ने क्या गुनाह कर डाला.शहरोज़ साहब ने जिन मुद्दे को उठाया है, वो सवाल मौजूं है.ब्लॉगर को मुस्लिम-हिन्दू,पुरुष-नारी या दलित खाने में न देखा जाए.लेखक तो लेखक होता है


aur ant mein:

@zeya
साथियों से गुजारिश है की नाहक बहस-मुबाहिसे में न उलझ कर मूल सवाल से मुठभेड़ करें.और स्वस्थ माहौल बनाएं.

aap sab ka abhaar!

mukti ने कहा…

मैंने यह पोस्ट पढ़ी. मैं इस बात से सहमत हूँ कि लेखक, लेखक होता है, स्त्री या पुरुष नहीं. लेकिन मुद्दे तो अलग-अलग होते हैं. और महिला मुद्दों पर महिलाएँ अधिक अच्छा लिख सकती हैं क्योंकि वे जो लिखती हैं वह उनका अनुभव होता है.
रही बात नारी ब्लॉग के विवादित होने की, तो मुझे इस तरह की बातें बकवास लगती है. नारी ब्लॉग के सदस्य अपने-अपने खुद के ब्लॉग पर कुछ भी लिखने के लिये स्वतंत्र हैं. उनमें आपस में मतभेद हो सकते हैं, पर महिलाएँ स्वस्थ बहस करती हैं. एक-दूसरे को अपशब्द नहीं कहतीं. यहाँ टिप्पणी करने वाले लोगों के विचार जानकर ऐसा लगता है कि नारी को समाज में अपना स्थान बनाने के लिये अभी बहुत मेहनत करनी पड़ेगी.

सुनीता शानू ने कहा…

शहरोज भाई नारी विवादित है और सदा रहेगी,क्योंकि जब-जब पुरूष और स्त्री में असमानता रहेगी। यह विवादास्पद स्थिति बनी ही रहेगी।हम यह देखना नही चाहते की खुद इश्वर ने नर और नारी में असमानता लाकर भी एक दूसरे के पूरक बनाया है। जहाँ नारी सुकोमल है तो दूसरी और वक्त पड़ने पर चण्डी का रूप भी धर सकती है। आज तो ऎसी कोई विधा नही जहाँ नारी आगे नही आई। परन्तु इसमें भी सबसे बड़ा हाथ उन पिता-पति या भाई का रहा है जिन्होने अपनी बेटियों,बहनो,और पत्नी को आगे बढ़ने में मदद की है। नर शब्द नारी से ही बना है और नारी का ही सृजन है। किन्तु यह भी सच है एक दूसरे के बिना कोई कुछ भी नही। यह लड़ाई सिर्फ़ सम्मान की है। धरती की तरह नारी भी सहनशील,सुंदर,सहज,शालीन है। किन्तु जब हद से ज्यादा पाबंदियां,अपमान,परिहास,जुल्मों का शिकार होती है धरती की तरह ही ज्वालामुखी की तरह फ़ूट पड़ती है। आशा करती हूँ आप सभी मेरी बात को समझेंगे,स्वीकार करेंगे।

सुनीता शानू ने कहा…

किसी के पक्ष या विपक्ष का सवाल नही है, मैने जो महसूस किया वही लिखा है। मेरी टिपपणी किसी को आहत करने वाली तो नही है फ़िर भी लगे तो क्षमा करें मै अपने शब्द वापस नही ले पाऊँगी।

Related Posts with Thumbnails

हमारे और ठिकाने

अंग्रेज़ी-हिन्दी

सहयोग-सूत्र

लोक का स्वर

यानी ऐसा मंच जहाँ हर उसकी आवाज़ शामिल होगी जिन्हें हम अक्सर हाशिया कहते हैं ..इस नए अग्रिग्रेटर से आज ही अपने ब्लॉग को जोड़ें.