इश्क़ गर बेहिसाब हो जाए
ज़िंदगी कामयाब हो जाए
वो अगर बेनकाब हो जाए
ज़र्रा भी आफताब हो जाए
तुमने देखा कहीं हुस्न -अज़्ल
देख लो इंकलाब हो जाए
मुस्कुरा दें गर वो गुलशन में
कांटा-कांटा गुलाब हो जाए
उनसे गर इंतेसाब हो जाए
रग-रेशा शादाब हो जाए
ज़िन्दगी गर अताब हो जाए
क़तरा-क़तरा तेज़ाब हो जाए
ज़िंदगी कामयाब हो जाए
वो अगर बेनकाब हो जाए
ज़र्रा भी आफताब हो जाए
तुमने देखा कहीं हुस्न -अज़्ल
देख लो इंकलाब हो जाए
मुस्कुरा दें गर वो गुलशन में
कांटा-कांटा गुलाब हो जाए
उनसे गर इंतेसाब हो जाए
रग-रेशा शादाब हो जाए
ज़िन्दगी गर अताब हो जाए
क़तरा-क़तरा तेज़ाब हो जाए
4 comments:
waah...bahut khoobsurat ghazal. saare sher lajawab.
यकीनन बहतर ग़ज़ल है .पल्लवी ने बजा कहा .दूसरी ग़ज़ल और बाकी दो शेर भी अच्छे हैं .जनाब कहते जाईये
बहुत खूब. लल्ला, तुम यूं ही लिखते रहो. हम दिल्ली आएंगे, तोहरे कलम चुमने...
alokputul@gmail.com
मुस्कुरा दें गर वो गुलशन में
कांटा-कांटा गुलाब हो जाए
मुझे अफ़सोस है कि इतनी सुंदर ग़ज़ल लिखते हो और हमें मालूम ही नही था ! इसे जारी रखिये !
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